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सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच नया रक्षा समझौता: मध्य पूर्व की राजनीति में बदलाव

सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच हाल ही में हुए रक्षा समझौते ने मध्य पूर्व की राजनीति में एक नया अध्याय खोला है। इस समझौते के तहत, किसी एक देश पर हमले को दोनों देशों पर हमला माना जाएगा, जो कि क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। जानें इस समझौते के पीछे की वजहें और इसके संभावित प्रभावों के बारे में।
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सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच नया रक्षा समझौता: मध्य पूर्व की राजनीति में बदलाव

सऊदी-पाक रक्षा समझौता

हाल ही में सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच एक महत्वपूर्ण रक्षा समझौता हुआ है, जो मध्य पूर्व की राजनीतिक स्थिति में एक नया मोड़ ला सकता है। यह समझौता उस समय हुआ है जब क्षेत्र में तनाव अपने उच्चतम स्तर पर है। इज़राइल और ईरान के बीच बढ़ते टकराव के साथ-साथ अमेरिका के प्रभाव में कमी को लेकर खाड़ी देशों में चिंता बनी हुई है।


इस रक्षा समझौते पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ की रियाद यात्रा के दौरान हस्ताक्षर किए गए। इस समझौते के अनुसार, यदि किसी एक देश पर हमला होता है, तो इसे दोनों देशों पर हमला माना जाएगा। यह एक महत्वपूर्ण पहलू है, क्योंकि पाकिस्तान के पास परमाणु शक्ति है और सऊदी अरब इस्लाम के दो सबसे पवित्र स्थलों का संरक्षक है।


पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच लगभग आठ दशकों से गहरे संबंध हैं, लेकिन यह नया समझौता उनके रिश्ते को एक नई सामरिक ऊंचाई पर ले जाता है। इसके बाद, दोनों देशों के बीच संयुक्त सैन्य प्रशिक्षण, रक्षा उत्पादन, और सऊदी अरब में पाकिस्तानी सैनिकों की तैनाती के नए अवसर खुल सकते हैं।


इस समझौते की वर्तमान समय में विशेष महत्व है, क्योंकि खाड़ी देश अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। इज़राइल द्वारा गाजा और अन्य पड़ोसी देशों में किए गए हमलों ने इस चिंता को और बढ़ा दिया है। खाड़ी देशों को अब यह एहसास हो रहा है कि उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए केवल अमेरिका पर निर्भर नहीं रहना चाहिए, इसलिए वे पाकिस्तान, मिस्र और तुर्की जैसे क्षेत्रीय सहयोगियों की ओर देख रहे हैं।