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सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी: हिमाचल प्रदेश का पर्यावरण संकट

सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश में बिगड़ते पर्यावरण पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। अदालत ने चेतावनी दी है कि यदि स्थिति को तुरंत नहीं सुधारा गया, तो यह खूबसूरत राज्य देश के नक्शे से गायब हो सकता है। जस्टिस की बेंच ने सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि केवल आर्थिक लाभ कमाना ही सब कुछ नहीं है। इंसानी गतिविधियों के कारण हो रही तबाही के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है। कोर्ट ने जनहित याचिका शुरू की है और सरकार से एक्शन प्लान मांगा है।
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सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी: हिमाचल प्रदेश का पर्यावरण संकट

हिमाचल प्रदेश में पर्यावरणीय संकट पर सुप्रीम कोर्ट की चिंता

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश में पर्यावरण की बिगड़ती स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की है। अदालत ने चेतावनी दी है कि यदि हालात को तुरंत नहीं सुधारा गया, तो यह खूबसूरत राज्य देश के नक्शे से 'हवा में गायब' हो सकता है।

जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और आर. महादेवन की बेंच ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में हालात बेहद गंभीर हो चुके हैं। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अब स्पष्ट और खतरनाक रूप से दिखाई दे रहा है।

सरकार को कड़ी फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकार को सख्त फटकार लगाते हुए कहा कि केवल आर्थिक लाभ कमाना ही सब कुछ नहीं है। पर्यावरण और प्रकृति को खतरे में डालकर राजस्व नहीं कमाया जा सकता। अदालत ने कहा कि अगर स्थिति इसी तरह जारी रही, तो वह दिन दूर नहीं जब पूरा हिमाचल प्रदेश देश के नक्शे से गायब हो सकता है। यह सुनवाई 28 जुलाई को हुई, जब अदालत हिमाचल हाई कोर्ट के एक निर्णय के खिलाफ याचिका पर विचार कर रही थी।

तबाही के लिए इंसान जिम्मेदार

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हिमाचल में हो रही तबाही के लिए केवल प्रकृति को दोष देना गलत है। असल में, इसके लिए इंसान जिम्मेदार हैं। पहाड़ों का खिसकना, भूस्खलन, और इमारतों का ढहना, ये सभी मानव गतिविधियों का परिणाम हैं।

कोर्ट ने कहा कि इस विनाश के पीछे मुख्य कारण हैं:

  • बड़े हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट (बिजली बनाने वाले डैम)।
  • चार-लेन वाली सड़कें बनाने के प्रोजेक्ट।
  • जंगलों की अंधाधुंध कटाई।
  • बिना योजना के बनाई जा रही बहुमंजिला इमारतें।

विकास के नाम पर विनाश

कोर्ट ने कहा कि हिमाचल अपनी 66 प्रतिशत से अधिक हरियाली और प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन मानव लालच और लापरवाही के कारण यह खजाना अब खतरे में है। पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर बिना उचित योजना के सड़कें, सुरंगें और इमारतें बनाई जा रही हैं, जिससे यह क्षेत्र प्राकृतिक आपदाओं के प्रति और अधिक संवेदनशील हो गया है।

अनियंत्रित पर्यटन ने भी राज्य के पर्यावरण पर भारी दबाव डाला है। अदालत ने कहा कि यदि इसे नहीं रोका गया, तो यह राज्य के पर्यावरण और समाज दोनों को बर्बाद कर सकता है।

अब क्या होगा?

सुप्रीम कोर्ट ने केवल चेतावनी नहीं दी, बल्कि इस मामले को गंभीरता से लेते हुए एक जनहित याचिका (PIL) भी शुरू की है। अदालत ने हिमाचल सरकार से पूछा है कि इस संकट से निपटने के लिए उनके पास क्या योजना है। केंद्र सरकार को भी निर्देश दिया गया है कि राज्य में पर्यावरण को और नुकसान न पहुंचे।

कोर्ट ने कहा कि जो नुकसान हो चुका है, उसकी भरपाई मुश्किल है, लेकिन 'कुछ न होने से कुछ होना बेहतर है।' इस मामले पर अगली सुनवाई 25 अगस्त को होगी। यह सुप्रीम कोर्ट की तरफ से एक महत्वपूर्ण और सीधी चेतावनी है कि यदि हिमाचल को बचाना है, तो विकास के मॉडल पर पुनर्विचार करने और पर्यावरण को प्राथमिकता देने का समय आ गया है।