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सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस ने समान नागरिक संहिता का समर्थन किया

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का समर्थन किया है। उन्होंने संविधान के 75 साल पूरे होने के बाद इसे लागू करने की आवश्यकता पर जोर दिया। चंद्रचूड़ ने कहा कि यह कदम सभी जातियों और समुदायों को विश्वास में लेकर उठाया जाना चाहिए। उन्होंने भारतीय संविधान को देश की स्थिरता का आधार बताया और ‘एक देश, एक चुनाव’ के विचार का भी समर्थन किया। उनके विचारों से यह स्पष्ट होता है कि संविधान को हमेशा प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
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सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस ने समान नागरिक संहिता का समर्थन किया

समान नागरिक संहिता का समर्थन

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के पक्ष में अपनी आवाज उठाई है। उन्होंने देशभर में समान नागरिक कानून लागू करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उनका कहना है कि संविधान के 75 वर्ष पूरे होने के बाद अब इस दिशा में कदम उठाने का सही समय है। हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह प्रक्रिया सभी जातियों, समुदायों और वर्गों को विश्वास में लेकर ही की जानी चाहिए। उल्लेखनीय है कि वे पहले ही ‘एक देश, एक चुनाव’ के विचार का समर्थन कर चुके हैं।


पूर्व चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कांग्रेस सांसद शशि थरूर की नई पुस्तक ‘आवर लिविंग कान्स्टीट्यूशन’ के विमोचन समारोह में कहा, ‘भारतीय संविधान देश को स्थिरता प्रदान करने वाली सबसे बड़ी ताकत है। यह संविधान विभिन्न समुदायों, धर्मों, क्षेत्रों और संस्कृतियों को एकजुट करके भारत को एक राष्ट्र के रूप में स्थापित करता है।’ संविधान पर उठते सवालों और संवैधानिक संस्थाओं के संदर्भ में उन्होंने कहा कि संविधान हमेशा के लिए है। पिछले 75 वर्षों में शासन, महामारी और आंतरिक व बाहरी चुनौतियों के कई दौर आए, लेकिन संविधान ने देश को स्थिरता प्रदान की है।


यह ध्यान देने योग्य है कि जस्टिस चंद्रचूड़ ने ‘एक देश, एक चुनाव’ के विचार का समर्थन किया है। उन्होंने 11 जुलाई को संयुक्त संसदीय समिति के समक्ष कहा था, ‘लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराना संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं है।’ हालांकि, उन्होंने प्रस्तावित विधेयक में चुनाव आयोग को दी जाने वाली शक्तियों पर चिंता व्यक्त की थी। उनका कहना था कि इससे चुनाव आयोग को विधानसभाओं के कार्यकाल को बढ़ाने या घटाने की शक्ति मिल सकती है। ऐसे मामलों में चुनाव आयोग की शक्तियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना चाहिए।