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सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस यशवंत वर्मा की आंतरिक जांच पर सुनवाई: क्या है मामला?

सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस यशवंत वर्मा की आंतरिक जांच को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू की। जस्टिस वर्मा ने आरोप लगाया है कि उन्हें बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के दोषी ठहराया गया। याचिका में मीडिया में लीक हुए संवेदनशील दस्तावेजों का भी जिक्र किया गया है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण सवाल उठाए और मामले की अगली सुनवाई 30 जुलाई को निर्धारित की गई है। जानें इस मामले की पूरी जानकारी और सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों के बारे में।
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सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस यशवंत वर्मा की आंतरिक जांच पर सुनवाई: क्या है मामला?

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की शुरुआत

सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई शुरू की, जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा ने अपनी खिलाफ की गई आंतरिक जांच को चुनौती दी है। यह मामला मार्च 2024 में तब सामने आया जब उनके दिल्ली स्थित आधिकारिक निवास पर अधजले नोट पाए गए थे। इसके बाद एक आंतरिक न्यायिक जांच की गई, जिसमें उन्हें कदाचार का दोषी ठहराया गया।


याचिका में क्या कहा गया?

जस्टिस वर्मा की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने याचिका दायर की, जिसमें आंतरिक जांच पैनल की रिपोर्ट और तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा दिए गए हटाने के सुझाव को रद्द करने की मांग की गई। सिब्बल ने कहा कि उनके मुवक्किल को उचित कानूनी प्रक्रिया के बिना दोषी ठहराया गया और मीडिया में संवेदनशील दस्तावेजों के लीक होने से न्यायाधीश को सार्वजनिक रूप से अपमानित किया गया।


सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ए.जी. मसीह की पीठ ने याचिका के प्रारूप पर कड़ी आपत्ति जताई। उन्होंने पूछा कि याचिका के साथ आंतरिक जांच की रिपोर्ट क्यों नहीं जोड़ी गई। जस्टिस दत्ता ने कहा, “इस तरह की गंभीर याचिका अधूरी नहीं होनी चाहिए थी।” सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि जस्टिस वर्मा ने आंतरिक जांच समिति की कार्यवाही में भाग क्यों नहीं लिया। कोर्ट ने कहा कि एक संवैधानिक पद पर रहते हुए उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि वे जांच प्रक्रिया का सम्मान करें।


राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेजने पर सवाल नहीं

सुनवाई के दौरान एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब पीठ ने पूछा कि जांच रिपोर्ट कहां भेजी गई है। जब सिब्बल ने बताया कि रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेजी गई थी, तो अदालत ने स्पष्ट किया कि यह कोई असंवैधानिक कदम नहीं है। कोर्ट ने कहा कि यह संसद में महाभियोग प्रस्ताव की प्रक्रिया को प्रभावित करने का प्रयास नहीं माना जा सकता।


राजनीतिकरण का आरोप और अनुच्छेद 124(5)

सिब्बल ने याचिका में यह भी तर्क दिया कि पूरे मामले का राजनीतिकरण किया गया है। उन्होंने कहा कि मीडिया में टेपों के लीक होने और उस पर हुई सार्वजनिक चर्चाओं ने न्यायिक गरिमा को ठेस पहुंचाई है। उन्होंने यह भी कहा कि संविधान के अनुच्छेद 124(5) के अनुसार, जब तक संसद में कोई औपचारिक प्रस्ताव नहीं लाया जाता, तब तक किसी न्यायाधीश के आचरण पर सार्वजनिक चर्चा नहीं होनी चाहिए।


अगली सुनवाई 30 जुलाई को

सुप्रीम कोर्ट ने प्रारंभिक सुनवाई के बाद इस मामले को आगामी बुधवार 30 जुलाई को फिर से सूचीबद्ध किया है। तब यह जांचा जाएगा कि क्या जांच प्रक्रिया में न्यायिक और संवैधानिक सुरक्षा के मानकों का उल्लंघन हुआ है या नहीं।