Newzfatafatlogo

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का सख्त संदेश: आतंकवादियों को सबक सिखाना है धर्म

आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने हाल ही में एक कार्यक्रम में आतंकवाद पर सख्त बयान दिया। उन्होंने कहा कि अहिंसा हमारा स्वभाव है, लेकिन आतंकवादियों को सबक सिखाना हमारा धर्म है। भागवत ने धर्म के सही अर्थ को समझने की आवश्यकता पर भी जोर दिया और जातिवाद तथा छुआछूत पर कड़ी टिप्पणी की। उनका यह बयान देश में गुस्से के माहौल के बीच आया है, और यह सवाल उठाता है कि क्या यह विचार समाज में बदलाव लाएगा।
 | 

संस्कृति की रक्षा का सवाल

आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने शनिवार को एक कार्यक्रम में स्पष्ट रूप से कहा कि अहिंसा हमारी पहचान है, लेकिन जब आतंकवादी हम पर हमला करते हैं, तो उन्हें सजा देना हमारा कर्तव्य है। यह केवल युद्ध का मामला नहीं है, बल्कि हमारी संस्कृति की सुरक्षा का भी प्रश्न है। हम अपने पड़ोसियों को कभी परेशान नहीं करते, लेकिन उपद्रवियों को दंडित करना हमारी जिम्मेदारी है। यह बयान पहलगाम में हुए आतंकी हमले के कुछ दिन बाद आया है, जब देशभर में गुस्से का माहौल है।


धर्म का सही अर्थ समझना आवश्यक

भागवत ने यह भी कहा कि धर्म केवल कर्मकांड तक सीमित नहीं है। धर्म का असली अर्थ सत्य, करुणा और शुद्धता है। "भारत को अब अपने धर्म को सही तरीके से समझना होगा और अपनी शुद्ध परंपराओं को अपनाना होगा। यह वह समय है जब हमें एकजुट होकर समाज में व्याप्त बुराइयों को समाप्त करना होगा।"


वैश्विक स्तर पर हिंदू सिद्धांतों का प्रचार

भागवत का यह बयान इस ओर इशारा करता है कि आरएसएस और हिंदू समाज अब अपने मूल सिद्धांतों और परंपराओं को वैश्विक स्तर पर फैलाने के लिए तत्पर हैं। उनका मानना है कि हिंदू घोषणापत्र इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में शांति और समृद्धि का नया मार्ग प्रशस्त करेगा।


क्या यह विचार समाज में बदलाव लाएगा?

भागवत के इस बयान ने निश्चित रूप से पूरे देश को झकझोर दिया है। उनका कहना है कि भारत को अपनी प्राचीन परंपराओं और विमर्श के माध्यम से दुनिया को एक नई दिशा दिखानी होगी। यह संदेश धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। क्या यह विचार समाज में बदलाव लाएगा? क्या भारत सच में अपनी प्राचीन परंपराओं की ओर लौटेगा? यह तो भविष्य ही बताएगा।


जातिवाद और छुआछूत पर कड़ी टिप्पणी

भागवत ने जातिवाद और छुआछूत पर भी कड़ा प्रहार किया। उन्होंने कहा, "हिंदू धर्म के शास्त्रों में न तो जातिवाद की कोई जगह है और न ही छुआछूत की। ये हमारे समाज के दोष हैं, जो पिछले 1500 वर्षों में किसी नए शास्त्र के न बनने के कारण फैल गए हैं।" उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि उडुपी के संत समाज ने भी साबित किया है कि वेदों में ऐसी कोई बात नहीं है।