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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का सुप्रीम कोर्ट पर बयान: क्या संसद की शक्ति को चुनौती दी जा रही है?

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की शक्ति पर सवाल उठाते हुए संसद की सर्वोच्चता की बात की है। उन्होंने स्पष्ट किया कि संविधान में संशोधन का अधिकार केवल संसद के पास है। उनका यह बयान सुप्रीम कोर्ट की कुछ टिप्पणियों के संदर्भ में आया है, जिससे संसद और न्यायपालिका के बीच चल रही बहस को एक नई दिशा मिली है। धनखड़ ने संविधान के अनुच्छेद 142 के उपयोग पर भी चिंता व्यक्त की है। जानें उनके बयान का पूरा विवरण और इसके पीछे की राजनीति।
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उपराष्ट्रपति का स्पष्ट बयान

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के प्रति अपनी स्पष्ट राय व्यक्त की है। मंगलवार को दिए गए एक बयान में उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में संसद सर्वोच्च है और कोई अन्य संस्था या प्राधिकरण इससे ऊपर नहीं हो सकता। धनखड़ ने यह भी स्पष्ट किया कि संविधान में संशोधन करने का अधिकार पूरी तरह से संसद के पास है। उन्होंने बताया कि सांसद जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि होते हैं और उन्हें संविधान में बदलाव करने या किसी कानून को लागू करने का अधिकार है।


सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया

यह बयान तब आया है जब उपराष्ट्रपति ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की कुछ टिप्पणियों की आलोचना की थी, जिसके बाद उनके बयान पर विभिन्न वर्गों में चर्चा और विवाद उत्पन्न हुआ। उन्होंने तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय पर सवाल उठाया था। इस मामले में राज्यपाल द्वारा विधेयकों को लंबित रखने और सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति को आदेश देने की बात पर उन्होंने नाराजगी व्यक्त की।


धनखड़ का तीखा वार

धनखड़ ने कहा, "आज हम एक ऐसे समय में हैं जब सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को आदेश दे रहा है। यह कहा जा रहा है कि राष्ट्रपति को निश्चित समय सीमा में निर्णय लेना होगा, और यदि ऐसा नहीं होता है तो मान लिया जाएगा कि विधेयक पारित हो गया। क्या अब अदालत ही संसद और कार्यपालिका को संचालित करेगी?" उन्होंने आगे कहा कि यह स्थिति लोकतंत्र की मूल भावना के खिलाफ है और इससे विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संतुलन प्रभावित हो सकता है।


संविधान के अनुच्छेद 142 का संदर्भ

इस संदर्भ में उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 142 का भी उल्लेख किया। इस अनुच्छेद के तहत सुप्रीम कोर्ट को "पूरे देश में लागू होने वाला निर्णय" लेने की शक्ति दी गई है, जिससे जनहित में प्रभावी न्याय सुनिश्चित किया जा सके। लेकिन उपराष्ट्रपति ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि, "कोर्ट के हाथ में अनुच्छेद 142 एक परमाणु जैसा हथियार बन गया है।" उन्होंने इस शक्तिशाली अनुच्छेद के उपयोग में सावधानी बरतने की आवश्यकता पर जोर दिया।


संसद का अधिकार

उपराष्ट्रपति की यह राय देश के संवैधानिक ढांचे और लोकतंत्र की कार्यप्रणाली पर चल रही बहस के बीच एक महत्वपूर्ण हस्तक्षेप मानी जा रही है। उनकी इस टिप्पणी ने एक बार फिर संसद बनाम न्यायपालिका के मुद्दे को नई दिशा दी है।