क्या डोनाल्ड ट्रंप की शांति नीति है सिर्फ दिखावा? जानिए उनके प्रयासों का सच

ट्रंप की शांति मिशन: क्या वाकई हो रही है शांति?
ट्रंप की शांति पहल: जब भी विश्व में युद्ध का माहौल बनता है, अमेरिका खुद को 'शांति का दूत' बताने में पीछे नहीं रहता। डोनाल्ड ट्रंप के व्हाइट हाउस में लौटने के बाद, वे लगातार यह दावा कर रहे हैं कि वे वैश्विक शांति की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा हो रहा है? क्या उनके प्रयास सफल हो रहे हैं या ये केवल दिखावे की बातें हैं? आइए इस पर गौर करते हैं।
भारत-पाक सीज़फायर: शुरुआत जोरदार, परिणाम निराशाजनक
हाल ही में ट्रंप ने घोषणा की कि भारत और पाकिस्तान के बीच उनकी मध्यस्थता से पूर्ण सीज़फायर हो गया है। लेकिन यह दावा चंद घंटों में ही गलत साबित हो गया जब पाकिस्तान से सीमा उल्लंघन की खबरें आईं। इसके परिणामस्वरूप, भारत में ट्रंप की 'शांति नीति' पर सवाल उठने लगे।
रूस-यूक्रेन युद्ध: 24 घंटे का दावा, महीनों की खामोशी
ट्रंप ने चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि यदि वे राष्ट्रपति बनते हैं, तो वे 24 घंटे में रूस-यूक्रेन युद्ध समाप्त कर देंगे। लेकिन हकीकत यह है कि अब तक केवल 30 दिन का अस्थायी युद्ध विराम ही हो पाया है। इससे ज्यादा कुछ नहीं बदला है।
इज़राइल-हमास: शांति की बातें, लेकिन बमबारी फिर से शुरू
जनवरी में अमेरिका, मिस्र और कतर की मदद से इज़राइल और हमास के बीच सीज़फायर हुआ था। लेकिन 18 मार्च को इज़राइल ने गाज़ा पर फिर से बमबारी शुरू कर दी। ट्रंप प्रशासन इस मामले में कोई ठोस समाधान नहीं निकाल सका, जिससे उनकी कूटनीति पर सवाल उठने लगे।
हूती विद्रोह: यमन में ट्रंप की नीति का असर नहीं
यमन में हूती विद्रोहियों को रोकने के लिए अमेरिका ने बमबारी की, लेकिन इसका कोई खास असर नहीं पड़ा। हूती विद्रोही आज भी लाल सागर और इज़राइल-अमेरिकी सैन्य ठिकानों को निशाना बना रहे हैं। ओमान की मदद से एक सीज़फायर जरूर हुआ, लेकिन हूती केवल अमेरिका पर हमले रोकने को तैयार हुए, इज़राइल पर नहीं।
बड़ी बातें, छोटे परिणाम
ट्रंप खुद को विश्व में शांति लाने वाला नेता साबित करना चाहते हैं, लेकिन उनके प्रयास अब तक अधूरे ही साबित हुए हैं। चाहे भारत-पाक हो या रूस-यूक्रेन, हर जगह उनकी कोशिशें या तो कमजोर पड़ी हैं या लंबे समय तक टिक नहीं पाईं।
क्या ट्रंप की कूटनीति में दम है?
ट्रंप के समर्थक मानते हैं कि उनके अचानक और कड़े फैसले उनकी ताकत हैं। वहीं आलोचकों का कहना है कि उनके निर्णय नासमझी और अहंकार से भरे होते हैं। सवाल यही है कि क्या केवल दावे करने से दुनिया में शांति आएगी, या इसके लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है?