Newzfatafatlogo

क्या बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे की टिप्पणी से सुप्रीम कोर्ट में बढ़ेगा विवाद?

बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट और उसके मुख्य न्यायाधीश पर विवादास्पद टिप्पणी की, जिसके बाद अवमानना की याचिका दायर करने की बात उठी। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि अवमानना का मामला दायर करने के लिए कोर्ट की अनुमति की आवश्यकता नहीं है, लेकिन अटॉर्नी जनरल की मंजूरी जरूरी है। इस बयान ने राजनीतिक हलचल मचा दी है, और अब सभी की नजरें इस बात पर हैं कि याचिकाकर्ता क्या कदम उठाएगा।
 | 

सुप्रीम कोर्ट पर विवादित टिप्पणी

नई दिल्ली: राजनीति में बयानबाजी आम बात है, लेकिन जब यह सर्वोच्च न्यायालय और उसके मुख्य न्यायाधीश पर होती है, तो यह गंभीरता को दर्शाती है। हाल ही में बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट और CJI संजीव खन्ना के खिलाफ विवादास्पद बयान दिया। इसके बाद उनके खिलाफ अवमानना की याचिका दायर करने की बात सामने आई, जिस पर अब सुप्रीम कोर्ट ने अपनी प्रतिक्रिया दी है।


सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट बयान

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि कोई अवमानना का मामला दायर करना चाहता है, तो उसे कोर्ट की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा कि याचिका दाखिल करने से पहले अटॉर्नी जनरल की मंजूरी आवश्यक है, लेकिन कोर्ट से अनुमति की कोई जरूरत नहीं है।


बीजेपी सांसद का विवादास्पद बयान

क्या था विवाद?

बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने एक सार्वजनिक बयान में कहा था कि यदि सुप्रीम कोर्ट को कानून बनाना है, तो संसद और विधानसभा को बंद कर देना चाहिए। उन्होंने CJI संजीव खन्ना को 'गृह युद्ध' जैसी स्थिति के लिए जिम्मेदार ठहराया। इसके बाद एक वकील ने इस बयान को अदालत की अवमानना मानते हुए केस दायर करने की मांग की।


सुप्रीम कोर्ट की प्रक्रिया

सुप्रीम कोर्ट की प्रक्रिया क्या है?

सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को बताया कि वह खुद याचिका दायर कर सकता है, लेकिन उसे अटॉर्नी जनरल की मंजूरी आवश्यक होगी। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि अब याचिकाकर्ता के हाथ में है कि वह आगे क्या कदम उठाता है।


राजनीतिक हलचल

राजनीतिक हलकों में हलचल

निशिकांत दुबे के बयान ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। कुछ लोग इसे लोकतंत्र के लिए खतरा मान रहे हैं, जबकि बीजेपी की ओर से अब तक कोई स्पष्टीकरण नहीं आया है। यह मामला केवल एक टिप्पणी नहीं है, बल्कि न्यायपालिका की गरिमा से भी जुड़ा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने जिस स्पष्टता से अपनी बात रखी है, वह भविष्य में ऐसे मामलों की दिशा तय कर सकती है। अब सभी की नजरें इस बात पर हैं कि क्या याचिकाकर्ता अटॉर्नी जनरल से अनुमति लेकर याचिका दायर करता है या नहीं।