जातिगत जनगणना पर कांग्रेस-भाजपा के बीच राजनीतिक संग्राम: राहुल गांधी की भूमिका पर चर्चा

केंद्र सरकार के जातिगत आंकड़ों के फैसले पर राजनीतिक हलचल
केंद्र सरकार ने आगामी जनगणना में जातिगत आंकड़े शामिल करने का निर्णय लिया है, जिससे देश की राजनीतिक स्थिति में नया मोड़ आया है। इस फैसले को लेकर कांग्रेस और भाजपा के बीच श्रेय लेने की होड़ मच गई है। दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय के बाहर लगे पोस्टरों ने इस राजनीतिक संघर्ष को और बढ़ा दिया है, जिसमें राहुल गांधी को जाति जनगणना के लिए केंद्र पर दबाव डालने का श्रेय दिया गया है।
कांग्रेस ने राहुल गांधी को बताया मुख्य भूमिका में
कांग्रेस नेता श्रीनिवास बी.वी. द्वारा लगाए गए पोस्टर में राहुल गांधी की तस्वीर के साथ लिखा गया है, "हमने कहा मोदी जी को जाति जनगणना करवानी पड़ेगी। हम करवाएंगे। दुनिया झुकती है, उसे झुकाने वाला चाहिए।" कांग्रेस का दावा है कि पार्टी ने इस मुद्दे को लगातार उठाया और राहुल गांधी की "भारत जोड़ो यात्रा" तथा जनसभाओं में इस मांग को जोरदार तरीके से प्रस्तुत किया, जिसके चलते सरकार को यह निर्णय लेना पड़ा। पार्टी इसे वंचित और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए न्याय दिलाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम मानती है।
सरकार का स्पष्टीकरण: राजनीतिकरण अनुचित
भाजपा ने इस मुद्दे पर पलटवार करते हुए कांग्रेस पर अवसरवादिता का आरोप लगाया है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि यह निर्णय पारदर्शिता और समावेशिता को बढ़ावा देने के लिए लिया गया है। उनका कहना है कि जातिगत आंकड़ों को एक ही प्लेटफॉर्म पर शामिल करने से नीति निर्माण और सामाजिक समरसता में मदद मिलेगी।
राहुल गांधी की प्रतिबद्धता
इस फैसले के बाद राहुल गांधी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' (पूर्व में ट्विटर) पर प्रतिक्रिया देते हुए लिखा, "हमने कहा कि मोदी जी को जाति जनगणना करवानी होगी। यह हमारा वादा था और हम इसे पूरा करवाकर रहेंगे। हर वर्ग की भागीदारी जानना देश के लोकतंत्र की मजबूती के लिए जरूरी है।" उन्होंने इस दिशा में काम कर रहे संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी बधाई दी।
भाजपा का ऐतिहासिक संदर्भ
कांग्रेस के दावों पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि देश को सच जानने का अधिकार है। उन्होंने आरोप लगाया कि "जवाहरलाल नेहरू जातिगत आरक्षण के खिलाफ थे और इंदिरा गांधी सरकार ने भी इस पर कोई पहल नहीं की।" उन्होंने बताया कि 1977 में जनता पार्टी सरकार ने मंडल आयोग का गठन कर सामाजिक न्याय की नींव रखी थी, जबकि बाद की कांग्रेस सरकारों ने इस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की।