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प्रशांत किशोर की चेतावनी: जाति जनगणना पर नीतीश सरकार को एक महीने का अल्टीमेटम

प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार की सरकार को जाति जनगणना और भूमि सर्वेक्षण पर एक महीने का अल्टीमेटम दिया है। यदि उनकी मांगें पूरी नहीं होती हैं, तो वे आंदोलन शुरू करेंगे। किशोर ने सरकार से स्पष्टता मांगी है कि दलित और महादलित परिवारों को भूमि का कब्जा कब मिलेगा। इसके अलावा, उन्होंने भूमि सर्वेक्षण प्रक्रिया में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। जानें उनके आंदोलन की योजना और मांगों के बारे में।
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प्रशांत किशोर का आंदोलन का ऐलान

जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर ने सोमवार को स्पष्ट किया कि यदि उनकी तीन प्रमुख मांगें, जिनमें जाति जनगणना शामिल है, पूरी नहीं की गईं, तो वह बिहार में नीतीश कुमार की सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू करेंगे। उन्होंने सरकार को इस मुद्दे पर एक महीने का समय दिया है। पूर्व राजनीतिक रणनीतिकार ने भूमि सर्वेक्षण पर तत्काल रोक लगाने की मांग की और आरोप लगाया कि इस प्रक्रिया में व्यापक भ्रष्टाचार हो रहा है। इसके साथ ही, उन्होंने दलित और महादलित समुदायों के लिए तीन डिसमिल भूमि उपलब्ध कराने के वादे पर भी सरकार से स्पष्टीकरण मांगा।


जाति जनगणना पर व्हाइट पेपर की मांग

प्रशांत किशोर ने कहा कि यदि एनडीए सरकार उनकी तीन मांगों को नहीं मानती है, तो जन सुराज 11 मई से राज्य के 40,000 राजस्व गांवों में हस्ताक्षर अभियान शुरू करेगा। उन्होंने बताया कि 11 जुलाई को एक करोड़ हस्ताक्षर एकत्र करने के बाद सरकार को ज्ञापन सौंपा जाएगा। अगर तब भी उनकी मांगों को नजरअंदाज किया गया, तो वे विधानसभा के अगले मानसून सत्र के दौरान विधानसभा का घेराव करेंगे, जो इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले का अंतिम सत्र होगा। उनकी पहली मांग राज्य सरकार द्वारा किए गए जाति सर्वेक्षण से संबंधित है।


प्रशांत किशोर के तीखे सवाल

जन सुराज के अध्यक्ष ने सवाल उठाया कि जाति सर्वेक्षण के आधार पर 65 प्रतिशत आरक्षण बढ़ाने का वादा क्या हुआ? किशोर ने बताया कि उनकी दूसरी मांग दलित और महादलित परिवारों से जुड़े 50 लाख बेघर/भूमिहीन परिवारों को घर बनाने के लिए तीन डिसमिल भूमि देने के सरकार के वादे से संबंधित है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, केवल 2 लाख परिवारों को भूमि आवंटित की गई है, लेकिन अभी तक उन्हें कब्जा नहीं दिया गया है।


भूमि सर्वेक्षण पर रोक की मांग

प्रशांत किशोर ने कहा कि वे सरकार से इस भूमि सर्वेक्षण प्रक्रिया को तुरंत रोकने का आग्रह करते हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि इस प्रक्रिया के तहत बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हो रहा है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि तेलंगाना और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों ने 80 प्रतिशत भूमि का सर्वेक्षण कर लिया है, जबकि बिहार में केवल 20 प्रतिशत ही सर्वेक्षण हो पाया है।


ब्रिटिश शासन के समय हुआ था आखिरी भूमि सर्वे

प्रशांत किशोर ने बताया कि भूमि सर्वेक्षण नीतीश कुमार सरकार के एजेंडे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है, क्योंकि राज्य में भूमि विवादों की संख्या बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि बिहार सरकार डेटा अपडेट करने के लिए विशेष भूमि सर्वेक्षण करा रही है, जबकि राज्य में आखिरी भूकर सर्वेक्षण 1911 में ब्रिटिश शासन के दौरान हुआ था।