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भारत के जल संकट का पाकिस्तान पर प्रभाव: सिंधु, झेलम और चेनाब नदियों का पानी रोका गया

भारत ने सिंधु, झेलम और चेनाब नदियों का पानी रोक दिया है, जिससे पाकिस्तान में गंभीर जल संकट की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। ये नदियाँ पाकिस्तान की कृषि और अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इस कदम से पंजाब और सिंध प्रांतों में खाद्य सुरक्षा पर खतरा मंडरा रहा है। जानें इस मुद्दे के पीछे के कारण और इसके संभावित प्रभावों के बारे में।
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भारत द्वारा पानी रोकने का निर्णय

भारत ने स्लुइस गेट को बंद कर दिया है, जिसके कारण सिंधु, झेलम और चेनाब नदियों का पानी पाकिस्तान नहीं पहुँच पा रहा है। इससे पाकिस्तान में गंभीर जल संकट उत्पन्न होने की संभावना है। ये नदियाँ पाकिस्तान के विभिन्न क्षेत्रों से होकर गुजरती हैं और कृषि तथा अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। सिंधु नदी अटोक, गिलगिट, थट्टा, कराची, जमशोरो, रावलपिंडी, कोट मिथन और पेशावर जैसे प्रमुख शहरों से होकर बहती है। वहीं, झेलम नदी मुजफ्फराबाद, न्यू मिरपुर सिटी और झांग से होकर गुजरती है, जबकि चेनाब नदी सियालकोट और कोट मिथन को प्रभावित करती है.


पाकिस्तान में कृषि संकट की आशंका

भारत के इस निर्णय से पाकिस्तान के पंजाब और सिंध प्रांतों में संकट की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, क्योंकि इन क्षेत्रों की कृषि इन नदियों के जल पर निर्भर है। सिंधु, झेलम और चेनाब नदियाँ इन इलाकों में सिंचाई का मुख्य स्रोत हैं। जल प्रवाह में कमी आने पर फसलें सूखने लगेंगी, जिससे उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इसके परिणामस्वरूप, पाकिस्तान की खाद्य सुरक्षा भी खतरे में पड़ सकती है.


पाकिस्तान की जीडीपी और कृषि का महत्व

पाकिस्तान की जीडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान लगभग 21 प्रतिशत है और यह देश के लगभग 45 प्रतिशत कार्यबल को रोजगार प्रदान करता है। यदि जल की उपलब्धता में कमी आई, तो न केवल उत्पादन में गिरावट आएगी, बल्कि बेरोजगारी भी तेजी से बढ़ेगी। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में इसका प्रभाव अधिक होगा, जहां अधिकांश लोग कृषि पर निर्भर हैं। इससे सामाजिक असंतोष, पलायन और अशांति जैसी समस्याएँ भी उत्पन्न हो सकती हैं.


सिंधु जल संधि और उसके प्रभाव

भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि के तहत जल का बंटवारा हुआ था। यदि भारत अपने अधिकारों का पूर्ण उपयोग करता है, तो पाकिस्तान को आर्थिक और सामाजिक नुकसान उठाना पड़ सकता है। यह कदम भले ही रणनीतिक हो, लेकिन इसका प्रभाव पाकिस्तान के आम नागरिकों पर गंभीर रूप से पड़ सकता है.