भारत-पाकिस्तान तनाव: जातिगत जनगणना और संभावित सैन्य कार्रवाई

भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव और जातिगत जनगणना
क्या सरकार युद्ध की स्थिति में जातिगत जनगणना कराने का निर्णय लेगी? यदि ऐसा होता, तो क्या प्रधानमंत्री मोदी अपनी तैयारियों की जानकारी सूत्रों के माध्यम से साझा करते? उन्होंने सशस्त्र बलों को 'पूर्ण अभियानगत छूट' देने का संदेश दिया है, जिसका अर्थ है कि सेना ही जवाबी कार्रवाई का तरीका और समय निर्धारित करेगी। यदि युद्ध होता, तो प्रधानमंत्री मोदी खुद सेनापति की भूमिका में नजर आते।
सिंधु नदी संधि के संदर्भ में, इसे तोड़ने की घोषणा नहीं की गई है, बल्कि इसे मुअतिल किया गया है। इसका मतलब यह नहीं है कि भारत चुप रहेगा। भारत पाकिस्तान से बदला लेगा, जैसे कि पुलवामा हमले के बाद बालाकोट में किया गया था। इस बार, पाकिस्तान सतर्क है, इसलिए हमले के तरीके में बदलाव हो सकता है।
पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसीम मुनीर ने हाल ही में भड़काऊ बयान दिए हैं, जिससे यह स्पष्ट है कि पाकिस्तानी सेना जवाबी कार्रवाई करने से नहीं चूकेगी। इस्लामाबाद की सरकार पर सेना का पूरा नियंत्रण है।
सोशल मीडिया पर झूठ और प्रोपेगेंडा का एक बड़ा प्रवाह पहले से ही मौजूद है। दोनों पक्षों से एक-दूसरे के खिलाफ भड़काऊ बयान जारी किए जा रहे हैं। भारत की कार्रवाई का पाकिस्तान बेसब्री से इंतजार कर रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार में चुनावी सभा में आतंकियों को सजा देने की बात कही है, जिससे पाकिस्तान पूरी तरह सतर्क है।
मेरा मानना है कि अंततः दोनों पक्षों के बीच सोशल मीडिया पर जुबानी युद्ध होगा। इस लड़ाई में कोई भी यह नहीं सोच रहा है कि भारत का लक्ष्य क्या होगा। क्या यह आतंकियों के ठिकानों को खत्म करना है, या पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को जीतना है? या फिर पाकिस्तान को उसकी औकात बताना है? लेकिन ऐसा कुछ नहीं होगा।
हालांकि, भारत के लिए सामरिक और भूराजनीतिक दृष्टिकोण से आज की स्थिति 1947 के बाद सबसे अनुकूल है। इसलिए, भारत को सीमित लक्ष्य के साथ एक सैन्य अभियान शुरू करना चाहिए, जिससे कश्मीर और पीओके का मुद्दा हमेशा के लिए समाप्त हो सके।
लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने अचानक जातिगत जनगणना का निर्णय लिया है। इसका मुख्य उद्देश्य बिहार और यूपी में चुनाव जीतना है। इसलिए, न तो युद्ध होगा और न ही पीओके पर कब्जा किया जाएगा।