सियाचिन में शहीद हुए हरियाणा के सूबेदार बलदेव सिंह की वीरता
हरियाणा के शहीद सूबेदार बलदेव सिंह
हरियाणा के शहीद सूबेदार बलदेव सिंह: सिरसा जिले के झोपड़ा गांव के वीर सैनिक सूबेदार बलदेव सिंह ने सियाचिन के कठिन युद्धक्षेत्र में अपने प्राणों की आहुति दी। उनकी अचानक बिगड़ी तबीयत ने उन्हें हमसे छीन लिया। आज उनका शव उनके गांव पहुंचने वाला है, जहां पूरा गांव अपने इस नायक को अंतिम विदाई देने के लिए एकत्रित होगा। यह कहानी एक सैनिक के बलिदान और उसके परिवार के दुख की है, जो हमें देश सेवा की कीमत का एहसास कराती है।
सियाचिन में बलदेव सिंह की शहादत
सियाचिन ग्लेशियर, जहां तापमान माइनस 50 डिग्री तक गिरता है और हर कदम पर खतरा होता है, वहां हरियाणा का बलदेव सिंह ऑपरेशन मेघदूत के तहत दुश्मन पर नजर रखे हुए थे। नॉर्थ ग्लेशियर की कुमार पोस्ट पर तैनात बलदेव शनिवार रात तक स्वस्थ थे।
लेकिन रविवार सुबह उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई। उल्टी, घबराहट और सीने में दर्द की शिकायत के बाद उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया। डॉक्टरों ने हर संभव प्रयास किया, लेकिन सुबह 11 बजे के करीब उन्होंने ड्यूटी के दौरान अंतिम सांस ली। उत्तरी कमान ने उन्हें श्रद्धांजलि दी, और उनका शव सिरसा के लिए रवाना हो चुका है।
खुशी का पल मातम में बदल गया
पिछले साल बलदेव सिंह के लिए गर्व का समय था। मार्च 2001 में 18 JAK RIF यूनिट में सिपाही के रूप में शामिल होने के बाद, उन्होंने कड़ी मेहनत से एक साल पहले सूबेदार का पद प्राप्त किया। यह उपलब्धि उनके परिवार और गांव के लिए खुशी का अवसर थी। लेकिन सियाचिन की कठिनाइयों ने इस खुशी को मातम में बदल दिया। सैन्य अधिकारी उनके शव को लद्दाख से दिल्ली के रास्ते सिरसा ले जा रहे हैं। सोमवार दोपहर तक उनके गांव में अंतिम संस्कार की तैयारियां चल रही हैं।
परिवार पर दुख का पहाड़
बलदेव सिंह हाल ही में अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ सिरसा के बीरपुर कॉलोनी में रह रहे थे। उनके पिता का पहले ही निधन हो चुका है, और अब परिवार में उनकी पत्नी, दो बच्चे, और एक भाई ही बचे हैं। बलदेव की शहादत ने इस परिवार को अनाथ बना दिया है। गांव में शोक का माहौल है, और लोग अपने इस वीर सपूत को याद कर श्रद्धांजलि दे रहे हैं। परिवार का कहना है कि बलदेव ने हमेशा देश सेवा को प्राथमिकता दी, और उनकी शहादत पर उन्हें गर्व है।
सियाचिन: दुनिया का सबसे खतरनाक युद्धक्षेत्र
सियाचिन ग्लेशियर दुनिया का सबसे ऊंचा और कठिन युद्धक्षेत्र है, जहां भारतीय सैनिक हर पल जान जोखिम में डालकर देश की रक्षा करते हैं। ऑपरेशन मेघदूत के 41 साल पूरे होने के बाद भी यह क्षेत्र चुनौतियों से भरा है। बलदेव सिंह जैसे सैनिकों की शहादत हमें याद दिलाती है कि हमारी आजादी और सुरक्षा के पीछे कितना बड़ा बलिदान है। उनकी कहानी हर उस सैनिक की वीरता का प्रतीक है, जो चुपचाप अपने कर्तव्य को निभाता है।
बलदेव सिंह की शहादत हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि हम शहीदों के परिवारों के लिए क्या कर सकते हैं। उनके बच्चों की शिक्षा, परिवार की आर्थिक मदद, और सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित करना हमारी जिम्मेदारी है। अगर आप शहीदों के परिवारों की मदद करना चाहते हैं, तो स्थानीय प्रशासन या सेना कल्याण संगठनों से संपर्क करें। इसके अलावा, अपने आसपास के सैनिकों और उनके परिवारों का सम्मान करें, क्योंकि वे हमारे लिए हर दिन बलिदान दे रहे हैं।
सिरसा का यह वीर सपूत भले ही आज हमारे बीच नहीं है, लेकिन उसकी शहादत देश के हर नागरिक के दिल में अमर रहेगी। बलदेव सिंह की कहानी हमें सिखाती है कि देश सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं।