सुप्रीम कोर्ट के जज की आरक्षण पर टिप्पणी: क्या है 'ट्रेन के डिब्बे' का संदर्भ?

आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की नई टिप्पणी
भारत में जातिगत आरक्षण पर हमेशा चर्चा होती रहती है। हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ न्यायाधीश की टिप्पणी ने इस विषय को फिर से चर्चा में ला दिया है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने आरक्षण व्यवस्था की तुलना ट्रेन के डिब्बे से करते हुए कहा कि जो लोग एक बार इसमें चढ़ जाते हैं, वे नहीं चाहते कि कोई और इसमें प्रवेश करे।
महाराष्ट्र में OBC आरक्षण पर सुनवाई
यह टिप्पणी महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनावों के OBC आरक्षण से संबंधित सुनवाई के दौरान आई। जज ने आरक्षण की समावेशिता और इसके सामाजिक उद्देश्य पर सवाल उठाए। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार की जिम्मेदारी है कि वह नए वंचित वर्गों की पहचान करे।
महाराष्ट्र निकाय चुनावों पर सुप्रीम कोर्ट की नजर
महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनावों का आयोजन आखिरी बार 2016-2017 में हुआ था। उसके बाद से OBC आरक्षण को लेकर कानूनी विवाद चल रहा है, जिससे चुनाव प्रक्रिया में देरी हुई है। 2021 में, सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार द्वारा लाए गए 27% OBC आरक्षण वाले अध्यादेश को रद्द कर दिया था।
आरक्षण की वैधता के लिए तीन-स्तरीय परीक्षण
सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की वैधता सुनिश्चित करने के लिए तीन स्तरों का परीक्षण निर्धारित किया है:
1. राज्य में पिछड़ेपन की समकालीन और कठोर जांच के लिए एक आयोग का गठन।
2. आयोग की रिपोर्ट के आधार पर आरक्षण का अनुपात तय किया जाना।
3. एससी, एसटी और ओबीसी का कुल आरक्षण 50% की सीमा से अधिक नहीं होना चाहिए।
इन शर्तों के कारण डेटा संग्रहण और कानूनी प्रक्रिया में देरी हुई, जिससे निकाय चुनावों पर असर पड़ा।
याचिकाकर्ताओं की दलीलें
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कोर्ट में कहा कि परिसीमन प्रक्रिया के दौरान OBC की पहचान की गई थी, लेकिन चुनाव में इसे नजरअंदाज किया जा रहा है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार कुछ चुनिंदा अधिकारियों के माध्यम से निकायों को नियंत्रित कर रही है।
वहीं, वकील गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि केवल OBC श्रेणी में शामिल करना पर्याप्त नहीं है, बल्कि इसके भीतर राजनीतिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों की भी पहचान की जानी चाहिए।
'ट्रेन के डिब्बे' वाली टिप्पणी का महत्व
इस दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, "देश में आरक्षण ट्रेन के डिब्बों की तरह हो गया है। जो लोग इसमें चढ़ गए हैं, वे दूसरों को अंदर नहीं आने देना चाहते। यह समावेशिता का सिद्धांत है। सरकारें अधिक वर्गों की पहचान करने के लिए बाध्य हैं। राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक रूप से वंचित लोग हैं। उन्हें (आरक्षण का) लाभ क्यों नहीं मिलना चाहिए? केवल कुछ परिवारों और समूहों को ही इसका लाभ मिल रहा है।"
यह बयान आरक्षण व्यवस्था की गहराई से समीक्षा का संकेत देता है और इस बहस को नए स्तर पर ले जाता है कि क्या आरक्षण का लाभ वास्तव में जरूरतमंदों तक पहुंच रहा है या नहीं।