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हज़रत अली का जन्मदिन: इस्लामिक संस्कृति में उनकी भूमिका

हज़रत अली का जन्मदिन इस्लामिक महीने रजब की 13 तारीख को मनाया जाता है, जो इस वर्ष 30 मार्च को आएगा। यह दिन मुस्लिम समुदाय के लिए हज़रत अली और उनके कार्यों को याद करने का अवसर है। हज़रत अली, जो इस्लाम के संस्थापक हजरत मुहम्मद के चचेरे भाई और दामाद थे, का जन्म काबे में हुआ। उनके जीवन में खलीफा बनने का विवाद और उन पर हुए हमले की घटनाएं भी महत्वपूर्ण हैं। जानें उनके जीवन के बारे में और कैसे उन्होंने इस्लाम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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हज़रत अली का जन्मदिन

हज़रत अली का जन्मदिन: इस्लामिक संस्कृति में उनकी भूमिका


लाइव हिंदी खबर :- हज़रत अली का जन्मदिन इस्लामिक महीने रजब की 13 तारीख को मनाया जाता है, जो इस वर्ष 30 मार्च को आएगा। यह दिन मुस्लिम समुदाय के लिए हज़रत अली और उनके कार्यों को याद करने का अवसर है। इस दिन, मुस्लिम लोग एकत्र होकर नमाज़ अदा करते हैं और कुरान का पाठ करते हैं। हज़रत अली का जन्म अल्लाह के पवित्र घर काबे में हुआ था। कहा जाता है कि उनकी मां जब काबे के पास गईं, तो अल्लाह के आदेश से काबे की दीवार ने उन्हें रास्ता दिया।


हज़रत अली का परिचय

हज़रत अली, इस्लाम के संस्थापक हजरत मुहम्मद के चचेरे भाई और दामाद थे। उनका पूरा नाम अली इब्ने अबी तालिब है। उनका जन्म मुसलमानों के पवित्र स्थल काबे के अंदर हुआ। अली का परिवार नेकदिली के लिए प्रसिद्ध था और वे उदारता के प्रतीक माने जाते थे। उनके कार्यों, साहस, और दृढ़ संकल्प के कारण उन्हें मुस्लिम संस्कृति में अत्यधिक सम्मान प्राप्त है। उनके जीवन ने इस्लाम के अनुयायियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना।


खलीफा बनने का विवाद

हज़रत मुहम्मद की मृत्यु के बाद, जिन लोगों ने हज़रत अली को अपना इमाम चुना, उन्हें शिया कहा जाता है। शिया मानते हैं कि हज़रत अली को पहला खलीफा होना चाहिए था, लेकिन उन्हें तीसरे खलीफा के बाद खलीफा बनाया गया। सुन्नी विचारधारा के अनुयायी उन्हें चौथा खलीफा मानते हैं, जबकि शिया मुसलमान इस चुनाव को गलत मानते हैं।


अली पर हमला

हज़रत अली रमज़ान के दौरान अपने बच्चों के घर इफ्तार के लिए जाते थे। एक रात, जब वे अपनी बेटी हज़रत उम्मे कुलसूम के घर गए, तो 19 रमज़ान को सुबह की नमाज़ के दौरान उन पर एक व्यक्ति ने ज़हर भरी तलवार से हमला किया। इस हमले से अली गंभीर रूप से घायल हो गए और उन्हें घर ले जाया गया।


हमलावर को माफ किया

हमला करने वाले इब्ने मुल्जिम को जब अली के पास लाया गया, तो उन्होंने अपने बेटे इमाम हसन से कहा कि उसके साथ बुरा व्यवहार न किया जाए। अली ने कहा कि अगर वे जीवित रहे, तो वे उसे क्षमा करेंगे। अली के शरीर में ज़हर फैल गया और 21 रमज़ान को उनकी मृत्यु हो गई।


शबे क़द्र पर हमला

अली पर हमला शबे क़द्र की रात हुआ, जो इस्लाम में एक पवित्र रात मानी जाती है। इस रात दुआ करना एक हजार महीनों की दुआ से बेहतर माना जाता है। अली इस रात लोगों को खाना खिलाते थे और उपदेश देते थे।