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CJI जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता में धर्म-परिवर्तन कानूनों पर सुनवाई की मांग

CJI जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता में एक महत्वपूर्ण सुनवाई की मांग की गई है, जिसमें भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने देशभर में लागू धर्म-परिवर्तन विरोधी कानूनों को चुनौती दी है। सुनवाई की तारीख 13 मई 2025 निर्धारित की गई है, जो जस्टिस खन्ना के रिटायरमेंट का दिन भी है। इस मामले में हर दिन 10 हजार से अधिक हिंदुओं के धर्मांतरण की बात कही गई है। जानें इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की क्या स्थिति है और इसके पीछे के तर्क क्या हैं।
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CJI जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ में सुनवाई की मांग

CJI जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता में धर्म-परिवर्तन कानूनों पर सुनवाई की मांग

CJI जस्टिस संजीव खन्ना: भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने देशभर में लागू धर्म-परिवर्तन विरोधी कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की मांग की। इस पर CJI खन्ना ने कहा कि निश्चित रूप से इस मामले की सुनवाई होगी और इसके लिए एक तारीख निर्धारित की गई, जो चर्चा का विषय बन गई है।

जिस पीठ के समक्ष यह याचिका प्रस्तुत की गई, उसमें CJI संजीव खन्ना और जस्टिस पीवी संजय कुमार शामिल थे। पीठ ने कहा कि इस मामले पर विस्तृत सुनवाई की आवश्यकता है। इस दौरान, CJI खन्ना ने कहा कि इसे 13 मई 2025 से शुरू होने वाले सप्ताह में रखा जाए। यह तारीख महत्वपूर्ण है क्योंकि जस्टिस खन्ना उसी दिन रिटायर हो रहे हैं। 14 मई को जस्टिस बीआर गवई नए मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगे।


धर्मांतरण की alarming स्थिति

हर दिन 10 हजार से ज्यादा हिंदुओं का धर्मांतरण हो रहा

एक रिपोर्ट के अनुसार, जब CJI सुनवाई की तारीख तय कर रहे थे, तब अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा, 'माई लॉर्ड! धर्मांतरण एक युद्ध की तरह है। हर दिन 10 हजार से अधिक लोगों का धर्म परिवर्तन हो रहा है।' उपाध्याय ने अवैध धर्मांतरण के खिलाफ याचिका दायर की है और त्वरित सुनवाई की मांग की है।


सुनवाई की प्रक्रिया

दूसरे पक्ष को बिना सुने सुनवाई नहीं होगी

कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की दलीलें सुनने से पहले दूसरे पक्ष की सुनवाई की आवश्यकता जताई। पीठ ने कहा कि हमें पहले दूसरे पक्ष को सुनना होगा। इन कानूनों का उद्देश्य जबरन धर्म परिवर्तन को रोकना है, लेकिन आलोचकों का कहना है कि इनका दुरुपयोग एक विशेष धार्मिक समुदाय को निशाना बनाने के लिए किया जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई हैं, जो विभिन्न धर्म-परिवर्तन कानूनों को चुनौती देती हैं। इनमें हिमाचल प्रदेश का धर्म परिवर्तन अधिनियम 2019, उत्तर प्रदेश का गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अध्यादेश, मध्य प्रदेश का धर्म स्वतंत्रता अध्यादेश 2020 और उत्तराखंड का कानून शामिल हैं। 2021 में न्यायालय ने जमीयत उलमा-ए-हिन्द को भी इस मामले में हस्तक्षेप करने की अनुमति दी थी, क्योंकि उसने आरोप लगाया था कि देशभर में मुसलमानों को परेशान किया जा रहा है।