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H-1B वीज़ा प्रणाली में धोखाधड़ी के आरोप, चेन्नई का मामला सुर्खियों में

पूर्व अमेरिकी प्रतिनिधि डॉ. डेव ब्रैट ने H-1B वीज़ा प्रणाली में धोखाधड़ी के गंभीर आरोप लगाए हैं, जिसमें चेन्नई का मामला प्रमुखता से सामने आया है। उन्होंने कहा कि इस जिले ने कानूनी सीमा से कई गुना अधिक वीज़ा प्राप्त किए हैं। यह मामला तब सामने आया है जब ट्रंप प्रशासन H-1B वीज़ा पर निगरानी बढ़ा रहा है। जानें इस मुद्दे की पूरी कहानी और इसके संभावित प्रभावों के बारे में।
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H-1B वीज़ा प्रणाली में धोखाधड़ी के आरोप, चेन्नई का मामला सुर्खियों में

H-1B वीज़ा प्रणाली पर गंभीर आरोप

नई दिल्ली: पूर्व अमेरिकी प्रतिनिधि और अर्थशास्त्री डॉ. डेव ब्रैट ने H-1B वीज़ा प्रणाली में व्यापक धोखाधड़ी का आरोप लगाया है। एक पॉडकास्ट में उन्होंने बताया कि भारत के एक जिले ने H-1B वीज़ा की संख्या में कानूनी सीमा से कई गुना अधिक वीज़ा प्राप्त किए हैं। ब्रैट के इस बयान ने इस कार्यक्रम की फिर से जांच की मांग को बढ़ा दिया है, खासकर जब ट्रंप प्रशासन H-1B वीज़ा पर निगरानी बढ़ा रहा है।


ब्रैट ने कहा कि चेन्नई ने अकेले 2,20,000 H-1B वीज़ा प्राप्त किए हैं, जबकि निर्धारित सीमा 85,000 है। उनका कहना है कि H-1B वीज़ा का लगभग 71 प्रतिशत भारत और 12 प्रतिशत चीन से आता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि कुछ गड़बड़ी हो रही है।


उन्होंने इस मुद्दे को अमेरिकी श्रमिकों के लिए खतरा बताया और कहा कि कई आवेदक अपनी योग्यता को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करते हैं, जो धोखाधड़ी है और इसका सीधा असर अमेरिकी परिवारों की नौकरियों पर पड़ता है।


रिपोर्टों के अनुसार, चेन्नई स्थित अमेरिकी वाणिज्य दूतावास ने वर्ष 2024 में लगभग 2,20,000 H-1B वीज़ा और 1,40,000 H-4 वीज़ा प्रोसेस किए। यह दूतावास तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और तेलंगाना से आने वाले आवेदनों को संभालता है, जिससे यह दुनिया के सबसे व्यस्त H-1B प्रोसेसिंग केंद्रों में से एक बन गया है।


ब्रैट के आरोपों के चलते महवश सिद्दीकी के पुराने दावे भी फिर से चर्चा में आ गए हैं। सिद्दीकी, जो भारतीय मूल की अमेरिकी विदेशी सेवा अधिकारी हैं, ने लगभग दो दशक पहले चेन्नई दूतावास में कार्य किया था। उन्होंने H-1B प्रणाली में फर्जी दस्तावेज़ और गलत योग्यता के मामलों की ओर इशारा किया था।


सिद्दीकी ने बताया कि 2005 से 2007 के बीच उन्होंने लगभग 51,000 नॉन-इमिग्रेंट वीज़ा जारी किए, जिनमें से अधिकांश H-1B श्रेणी के थे। उनके अनुसार, भारत से आने वाले 80 से 90 प्रतिशत आवेदनों में फर्जी डिग्रियाँ और दस्तावेज़ शामिल होते थे।


उन्होंने हैदराबाद के अमीरपेट क्षेत्र को एक प्रमुख केंद्र बताया, जहाँ कुछ संस्थान वीज़ा आवेदकों को प्रशिक्षण देते थे और नकली दस्तावेज़ उपलब्ध कराते थे।


सिद्दीकी ने कहा कि जब वाणिज्य दूतावास के अधिकारियों ने धोखाधड़ी के मामलों की पहचान करना शुरू किया, तो उनकी कोशिशों का विरोध भी हुआ। उनके अनुसार, इस दिशा में उठाए गए कदमों पर राजनीतिक दबाव पड़ा।


H-1B वीज़ा अमेरिकी कंपनियों को विशेष क्षेत्रों में विदेशी पेशेवरों को नियुक्त करने की अनुमति देता है, और इस श्रेणी में अधिकांश वीज़ा भारतीय नागरिकों को मिलते हैं। वर्ष 2024 में लगभग 70 प्रतिशत H-1B वीज़ा भारतीय नागरिकों को जारी किए गए, जिससे भारत अमेरिकी श्रम बाजार में कुशल प्रवासियों का सबसे बड़ा स्रोत बना हुआ है।