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अखिलेश यादव का सनातन प्रेम: सियासी मजबूरी या वास्तविकता?

उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण बनाम यादव की सियासी लड़ाई में अखिलेश यादव का सनातन प्रेम एक नया मोड़ ले रहा है। इटावा कांड के बाद उन पर ब्राह्मणों के खिलाफ होने का आरोप लग रहा है, जबकि वह खुद को सनातन प्रेमी बता रहे हैं। इस संघर्ष में जातीय विद्वेष का खतरा दोनों प्रमुख पार्टियों के लिए बढ़ता जा रहा है। जानें इस सियासी जंग के पीछे की सच्चाई और अखिलेश यादव की रणनीतियाँ।
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अखिलेश यादव का सनातन प्रेम: सियासी मजबूरी या वास्तविकता?

ब्राह्मण बनाम यादव: सियासी संघर्ष की नई परतें

इटावा में कथावाचक कांड के बाद उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण और यादव के बीच सियासी टकराव तेज हो गया है। अखिलेश यादव ने खुद को सबसे बड़ा सनातन प्रेमी बताते हुए यह दावा किया है कि समाजवाद असली सनातन है। रामजीलाल सुमन के मामले में ठाकुरों को नाराज करने के बाद, अब वह यादव बनाम ब्राह्मण की लड़ाई में उलझ गए हैं। इटावा कांड के बाद उन पर यह आरोप लगने लगा है कि वह ब्राह्मणों के खिलाफ हैं। यादव कथावाचकों का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन ब्राह्मणों के पक्ष में उनकी चुप्पी ने नई सियासी बहस को जन्म दिया है।


पीडीए में पिछड़े और दलितों की भूमिका

अखिलेश यादव को यह समझ में आ गया है कि 2012 में उनकी सरकार बनाने में ब्राह्मणों की महत्वपूर्ण भूमिका थी। उस समय मुस्लिम और यादव के साथ-साथ कई क्षत्रिय और अन्य स्वर्ण जातियां भी शामिल थीं। लेकिन कथावाचक कांड के बाद जातीय विद्वेष बढ़ने से समाजवादी पार्टी को खतरा हो सकता है। बीजेपी इस स्थिति का लाभ उठाने की कोशिश कर रही है, जबकि अखिलेश यादव का कहना है कि असली सनातन धर्म समाजवादी लोग ही पालन कर रहे हैं।


डैमेज कंट्रोल की कोशिशें

ब्राह्मण बनाम यादव के इस संघर्ष में अखिलेश यादव ने खुद को ब्राह्मणों का समर्थक साबित करने के लिए संतोष पांडे के घर जाकर उनके परिवार के साथ चाय-नाश्ता किया। संतोष पांडे की माता ने उन्हें उपहार भी दिए। समाजवादी पार्टी के नेताओं का कहना है कि ब्राह्मण हमेशा से उनके साथ रहे हैं। लेकिन इस बीच, बीजेपी ने अखिलेश यादव के बयान को मुद्दा बनाकर उन पर हमला किया है, यह कहते हुए कि समाजवादी पार्टी तुष्टिकरण की राजनीति कर रही है।


जातीय विद्वेष का खतरा

बीजेपी और समाजवादी पार्टी दोनों के लिए जातीय विद्वेष बढ़ने से नुकसान हो सकता है। बीजेपी जानती है कि हिंदुत्व के नाम पर विभिन्न जातियां उसके साथ खड़ी रह सकती हैं, जबकि समाजवादी पार्टी का प्रयास है कि अगड़ी जातियां उनके साथ रहें, ताकि 2027 का सपना पूरा हो सके।