अनीता कुंडू: साहस और संघर्ष की मिसाल

एक प्रेरणादायक यात्रा
नई दिल्ली: 8 जुलाई को एक विशेष दिन के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि इसी दिन एक ऐसी बेटी का जन्म हुआ जिसने जीवन की कठिनतम चुनौतियों को पार किया। अनीता कुंडू केवल एक नाम नहीं हैं, बल्कि वे प्रेरणा और साहस की जीवित मिसाल हैं। उन्होंने न केवल पहाड़ों को फतह किया, बल्कि समाज की सोच को भी नई दिशा दी। आज वे संघर्ष, जज्बा और ऊंचाइयों को छूने की प्रेरणा का प्रतीक बन चुकी हैं।
अनीता कुंडू का जन्म 8 जुलाई 1991 को हरियाणा के हिसार जिले में हुआ। उनका बचपन कई संघर्षों से भरा रहा। जब वे केवल 12 वर्ष की थीं, तब उनके पिता का निधन हो गया। पिता के जाने के बाद, उनकी मां ने खेतों में काम किया और अनीता ने दूध बेचकर परिवार का सहारा बनने का प्रयास किया। कठिनाइयों के बावजूद, अनीता ने हालातों को अपने लिए सीढ़ी बना लिया और दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ाई की।
2008 में, अनीता कुंडू हरियाणा पुलिस में शामिल हुईं। सरकारी नौकरी मिलने के बाद, उनके परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ और पर्वतारोहण के प्रति उनका जुनून और बढ़ गया। उन्होंने अपने सीनियर अधिकारियों से अपनी इच्छाओं को साझा किया और कठोर प्रशिक्षण का सामना किया। इसके बाद, अनीता ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
अनीता कुंडू माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला हैं, जिन्होंने इसे चीन और नेपाल दोनों तरफ से फतह किया। उन्होंने माउंट मकालू और माउंट मनास्लू पर भी सफलतापूर्वक चढ़ाई की, जो विश्व के सबसे ऊंचे शिखरों में शामिल हैं। इसके अलावा, उन्होंने विन्सन मैसिफ, जो कि छठे महाद्वीप की सबसे ऊंची चोटी है, को भी फतह किया है।
अनीता कुंडू को तेनजिंग नोर्गे राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार और कल्पना चावला अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया है। आज वे केवल एक पर्वतारोही नहीं हैं, बल्कि उन लड़कियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं जो छोटे कस्बों में बड़े सपने देखती हैं।