अमित शाह का बयान: बिहार में मुख्यमंत्री का फैसला चुनाव के बाद होगा

मुख्यमंत्री का निर्णय चुनाव के बाद
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक बार फिर स्पष्ट किया है कि बिहार के मुख्यमंत्री का चुनावी निर्णय चुनाव के बाद लिया जाएगा। इस साल की शुरुआत में भी उन्होंने इसी तरह का बयान दिया था, जिसके बाद नीतीश कुमार की पार्टी ने '20 से 25 फिर से नीतीश' का नारा उठाया था। हालांकि, चुनाव के बाद नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने की संभावनाओं में कमी आई, जिससे एनडीए का ग्राफ गिरने लगा और राजद, विशेषकर तेजस्वी यादव का ग्राफ बढ़ने लगा। इस स्थिति को देखते हुए प्रदेश भाजपा के नेता नीतीश के समर्थन में बयान देने लगे। सभी ने कहा कि मुख्यमंत्री पद पर कोई संदेह नहीं है, नीतीश ही होंगे। लेकिन अब टिकट वितरण के बाद और महागठबंधन में फूट पड़ने के बाद अमित शाह ने फिर से कहा है कि एनडीए नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगा, लेकिन मुख्यमंत्री का निर्णय चुनाव के बाद होगा।
भाजपा की ईमानदारी पर सवाल
भाजपा की ईमानदारी की सराहना की जानी चाहिए कि वह धोखा नहीं देना चाहती। यह नहीं है कि वह पहले से ही घोषणा कर दे कि नीतीश मुख्यमंत्री होंगे और चुनाव के बाद इससे पलट जाए। पिछली बार, यानी 2020 में, भाजपा ने कहा था कि एनडीए की सरकार बनेगी तो नीतीश कुमार मुख्यमंत्री होंगे। उस चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यू को केवल 43 सीटें मिलीं और वह तीसरे स्थान पर रही। फिर भी विधानसभा की संरचना ऐसी बनी कि नीतीश मुख्यमंत्री बने। उन्होंने पहले भाजपा के साथ सरकार बनाई, फिर राजद के साथ और अंत में फिर से भाजपा के साथ लौटे। विधानसभा की संरचना ऐसी है कि उनके बिना कोई सरकार नहीं बना सकता। बिहार में राष्ट्रीय जनता दल हमेशा एक मजबूत ताकत रहेगी और वह भाजपा के साथ नहीं जा सकती। इसलिए नीतीश कुमार कम सीटों के बावजूद भाजपा और राजद दोनों को मजबूर करते हैं कि वे उन्हें मुख्यमंत्री स्वीकार करें।
भाजपा की संभावनाएं
ऐसा प्रतीत होता है कि भाजपा का नेतृत्व किसी ऐसी स्थिति की कल्पना कर रहा है, जिसमें वह नीतीश कुमार के बिना सरकार बना सके। लेकिन इसकी संभावना कम नजर आ रही है। यह संभव नहीं लगता कि चुनाव के बाद नीतीश कुमार को शिवराज सिंह चौहान या एकनाथ शिंदे की तरह हटाया जाए। ध्यान रहे कि इन दोनों के नेतृत्व में भी चुनाव हुआ था, लेकिन चुनाव के बाद ये मुख्यमंत्री नहीं बन पाए। बिहार में ऐसा होना इसलिए संभव नहीं है क्योंकि भाजपा केवल 101 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। यदि चिराग पासवान, उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी की सीटें भी जोड़ दी जाएं, तब भी कुल 142 सीटें होंगी और इनमें से 122 सीटें, यानी 85 प्रतिशत सीटें हासिल करना लगभग असंभव है। यदि इन पार्टियों का 85 प्रतिशत स्ट्राइक रेट होता है, तो नीतीश की पार्टी का भी स्ट्राइक रेट उसके आसपास ही होगा। अंततः जब भाजपा और नीतीश की पार्टी के बीच पांच या 10 सीटों का अंतर होगा, तो भाजपा की मजबूरी होगी कि वह नीतीश के अनुसार सरकार बनाए। इसलिए यह आश्चर्यजनक है कि भाजपा के नेता नीतीश का नाम क्यों नहीं घोषित कर रहे हैं। उनका नाम न घोषित करने से केवल नीतीश को ही नुकसान नहीं होगा, बल्कि पूरे एनडीए को भी नुकसान हो सकता है।