अमेरिका का वैश्विक अलगाव: एक नई वास्तविकता
अमेरिका का बदलता चेहरा
क्या कोई सोच सकता था कि अमेरिका, जो हमेशा से 'नियम-आधारित व्यवस्था' का रक्षक रहा है, एक दिन खुद को अछूत बना लेगा? जिसने वैश्विक व्यवस्था की नींव रखी, नाटो का गठन किया और संयुक्त राष्ट्र का चार्टर लिखा, वही अब उस भूमिका से पीछे हट रहा है।
आइजनहावर से लेकर रीगन तक, अमेरिका की वैश्विक भूमिका स्थिर रही, एक ऐसा देश जो दुनिया का चौकीदार और लोकतंत्र का अगुआ माना जाता था। अमेरिकी शक्ति अंतरराष्ट्रीय जीवन का आधार थी, जो अहंकार और हस्तक्षेप के साथ जुड़ी हुई थी। अमेरिका ने खुद को वैश्विक लोकतंत्र का माई-बाप मान लिया था, और दुनिया ने भी इसे स्वीकार किया।
अमेरिकी ड्रीम, जो घरेलू आकांक्षा से कहीं बड़ा था, सिलिकॉन वैली, हॉलीवुड और वॉल स्ट्रीट के आकर्षण से पुष्ट होता गया।
लेकिन यह मिथक तब दरकने लगा जब डोनाल्ड ट्रम्प ने व्हाइट हाउस में कदम रखा। अमेरिका का आत्मविश्वास कमज़ोर हुआ और उसने दीवारें खड़ी करने की भाषा बोलनी शुरू कर दी। नतीजतन, अमेरिका का वैश्विक प्रभाव कम होने लगा।
हाल ही में पीयू रिसर्च के सर्वे ने इस बदलाव को स्पष्ट रूप से दर्शाया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रमुख लोकतंत्रों में अमेरिकी राष्ट्रपति पर भरोसा ऐतिहासिक स्तर पर गिरा है। 24 में से 19 देशों के लोगों ने ट्रम्प के नेतृत्व पर भरोसा नहीं किया।
इतिहास हमें एक दर्पण दिखाता है। रूस का अलगाव धीरे-धीरे आया, और अब अमेरिका भी उसी दिशा में बढ़ रहा है। ट्रम्प प्रशासन की वैश्विक संस्थाओं के प्रति अवमानना और सहयोगियों को बोझ समझने की प्रवृत्ति ने अमेरिका को अलग-थलग कर दिया है।
हाल ही में बेलें में हुए COP30 महाअधिवेशन में अमेरिका की अनुपस्थिति ने यह स्पष्ट कर दिया कि अमेरिका अब वैश्विक मंचों पर पहले जैसा प्रभाव नहीं रखता।
अमेरिका का यह अलगाव अब स्पष्ट रूप से सुनाई दे रहा है। ट्रम्प ने जलवायु संकट को मज़ाक बना दिया, और जब अमेरिका ने COP30 में उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल नहीं भेजा, तो अन्य देशों ने राहत की सांस ली।
अमेरिका का यह अकेलापन अब छिपा नहीं रह गया है। ट्रम्प ने नाटो को पुराना बताया और सहयोगियों को डांटा। इससे सहयोगियों ने बैक-अप योजनाएँ बनानी शुरू कर दीं।
अमेरिका का यह अलगाव अब एक गंभीर खतरा बन चुका है। जब कोई राष्ट्र मान लेता है कि उसे दुनिया की ज़रूरत नहीं, तो दुनिया भी उसे नजरअंदाज करने लगती है।
अंततः, अमेरिका का यह अलगाव एक नई वास्तविकता की ओर बढ़ रहा है, जिसमें वह अकेला और कमजोर होता जा रहा है।
