असम और तमिलनाडु में राज्यसभा चुनाव: राजनीतिक समीकरणों का नया अध्याय

राज्यसभा की रिक्त सीटों का महत्व
राज्यसभा की आठ खाली सीटों में से असम से दो और तमिलनाडु से छह के लिए चुनाव, एनडीए और इंडिया गठबंधन के लिए संसद में संख्या संतुलन के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं। ये चुनाव 2026 में होने वाले विधानसभा चुनावों की दिशा भी निर्धारित कर सकते हैं।
असम में भाजपा की रणनीति
असम में राज्यसभा की दो सीटें खाली हो रही हैं। एक सीट भाजपा सांसद मिशन रंजन दास और दूसरी असम गण परिषद (AGP) के बीरेंद्र प्रसाद बैश्य की है। 126 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के पास 64 विधायक हैं, AGP के 9 और यूपीपीएल के 7 विधायक हैं। इस प्रकार एनडीए के पास कुल 80 विधायक हैं। राज्यसभा की एक सीट के लिए 43 विधायकों का समर्थन आवश्यक है, जिससे भाजपा की एक सीट सुरक्षित मानी जा रही है। दूसरी सीट पर असली मुकाबला होगा।
विपक्ष की एकजुटता की चुनौती
विपक्ष के पास कांग्रेस (26), AIUDF (15), BPF (3), CPI (1) मिलाकर 45 विधायक हैं, जो 43 के आवश्यक आंकड़े से अधिक हैं। हालांकि, यह तभी संभव है जब विपक्ष एकजुट होकर मतदान करे। भाजपा की योजना विपक्ष में सेंध लगाकर दूसरी सीट भी जीतने की है।
तमिलनाडु में सीटों का बंटवारा
तमिलनाडु से राज्यसभा की छह सीटें रिक्त हो रही हैं, जिनमें से द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) तीन, अन्नाद्रमुक (AIADMK), पट्टाली मक्कल कच्ची (PMK) और एमडीएमके (MDMK) एक-एक सीट पर काबिज थे। विधानसभा में DMK के पास 133 विधायक हैं, जो भाजपा विरोधी INDIA गठबंधन का हिस्सा हैं। DMK गठबंधन चार सीटें जीत सकता है।
भाजपा की स्थिति पर प्रभाव
यदि भाजपा असम की दोनों और तमिलनाडु की एक सीट जीतने में सफल रहती है, तो उसकी संख्या 110 से बढ़कर 113 हो जाएगी। वहीं, यदि कांग्रेस और INDIA गठबंधन तमिलनाडु में पांच और असम में एक सीट जीतते हैं, तो उनकी स्थिति मजबूत होगी।
राजनीतिक ताकत का परीक्षण
ये चुनाव केवल संख्या का खेल नहीं हैं, बल्कि 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक ताकत और एकजुटता का परीक्षण भी हैं। भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए यह एक अवसर है अपनी स्थिति को मजबूत करने का या सेंध से बचने का।