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आरएसएस की संविधान में समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता पर बहस की मांग, बीजेपी का टालमटोल

आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने संविधान की प्रस्तावना में समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता पर बहस की मांग की है, लेकिन बीजेपी इस मुद्दे से किनारा कर रही है। चुनावी नुकसान की आशंका और अपने संविधान में इन शब्दों का उल्लेख होने के कारण बीजेपी सतर्क है। जानें इस मुद्दे पर दोनों पक्षों की स्थिति और इसके राजनीतिक प्रभाव।
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आरएसएस की संविधान में समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता पर बहस की मांग, बीजेपी का टालमटोल

आरएसएस की बहस की मांग

संविधान की प्रस्तावना में समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के शब्दों पर आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने बहस की मांग की है, लेकिन बीजेपी इस मुद्दे से दूरी बनाते हुए नजर आ रही है। आरएसएस इस विषय पर अपनी स्थिति पर कायम है, जबकि बीजेपी चुनावी नुकसान की आशंका के चलते इस पर चुप्पी साधे हुए है।


बीजेपी की प्रतिक्रिया

संघ ने एक बार फिर दत्तात्रेय होसबोले के उठाए गए मुद्दों पर चर्चा की मांग की है। आरएसएस के प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि होसबोले की टिप्पणी स्पष्ट है और इस पर चर्चा होनी चाहिए। बीजेपी ने इस मुद्दे पर आनाकानी की है, खासकर आपातकाल के दौरान संविधान में किए गए बदलावों के संदर्भ में।


दत्तात्रेय होसबोले की मांग का महत्व

बीजेपी इस बहस से दूरी बनाकर विपक्षी दलों द्वारा संविधान में बदलाव के आरोपों का सामना करना चाहती है। पार्टी ने अपने आधिकारिक बयान में कहा है कि वह संविधान की पवित्रता में विश्वास रखती है, लेकिन कांग्रेस के रातोंरात बदलावों को भी याद दिलाया।


सुधांशु त्रिवेदी का बयान

बीजेपी के संविधान में समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के संदर्भ में विचार-विमर्श किया गया था। पार्टी ने अपने संविधान में स्पष्ट किया है कि वह भारत के संविधान और लोकतंत्र के सिद्धांतों के प्रति निष्ठा रखेगी।


कांग्रेस पर बीजेपी का ध्यान

आरएसएस के बयान के बाद बीजेपी ने अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए कांग्रेस की इमरजेंसी पर ध्यान केंद्रित किया है। पार्टी ने अपने नेताओं को इस बहस में बयान देने से बचने को कहा है, खासकर बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर।