इंडियन इम्यूनोलॉजिकल्स ने नकली रेबीज वैक्सीन के आरोपों को किया खारिज
इंडियन इम्यूनोलॉजिकल्स का स्पष्टीकरण
नई दिल्ली - हैदराबाद स्थित दवा निर्माता कंपनी इंडियन इम्यूनोलॉजिकल्स लिमिटेड (आईआईएल) ने ऑस्ट्रेलियन टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप ऑन इम्यूनाइजेशन (एटीएजीआई) द्वारा लगाए गए आरोपों को खारिज कर दिया है, जिसमें भारतीय कंपनी की एंटी-रेबीज वैक्सीन को नकली बताया गया था।
हाल ही में एटीएजीआई ने एक एडवाइजरी जारी की थी, जिसमें कहा गया था कि नवंबर 2023 से भारत में अभयरेब वैक्सीन के नकली बैचों का प्रसार हो रहा है। आईआईएल ने इस पर अपनी आपत्ति दर्ज कराई है।
आईआईएल का कहना है कि एटीएजीआई की सलाह से यह संदेश गया है कि 1 नवंबर 2023 के बाद भारत में लगाई गई अभयरेब वैक्सीन को अमान्य माना जाए, जिससे आम जनता और स्वास्थ्य कर्मियों में भ्रम उत्पन्न हो रहा है। कंपनी ने कहा कि इस एडवाइजरी से वैक्सीन पर विश्वास कमजोर हो सकता है।
शनिवार को आईआईएल के वाइस प्रेसिडेंट और क्वालिटी मैनेजमेंट हेड सुनील तिवारी ने कहा, “हम स्टेकहोल्डर्स को यह विश्वास दिलाना चाहते हैं कि हमारी फार्माकोविजिलेंस और क्वालिटी सिस्टम मजबूत हैं, और जनता हमारे अधिकृत चैनलों से प्राप्त वैक्सीन पर भरोसा कर सकती है।” कंपनी ने बताया कि 2000 से अब तक भारत और 40 देशों में अभयरेब की 210 मिलियन से अधिक डोज वितरित की जा चुकी हैं। भारत में इस वैक्सीन का 40% मार्केट शेयर है।
ऑस्ट्रेलियाई स्वास्थ्य अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि जिन लोगों को नकली वैक्सीन लगी है, वे रेबीज से पूरी तरह सुरक्षित नहीं हो सकते। 1 नवंबर 2023 से अभयरेब का टीका लगवाने वालों को सलाह दी गई है कि वे अपने चिकित्सक से संपर्क करें। आईआईएल ने कहा कि जनवरी 2025 में एक विशेष बैच (बैच # केए 24014) की पैकेजिंग में गड़बड़ी पाई गई थी, जिसके बारे में कंपनी ने तुरंत भारतीय नियंत्रकों और कानून प्रवर्तन एजेंसियों को सूचित किया।
कंपनी ने इसे एक “अलग घटना” बताते हुए कहा कि “नकली बैच अब दुकानों पर उपलब्ध नहीं है।” आईआईएल ने हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स और आम जनता को सुरक्षित वैक्सीन का भरोसा दिलाया है।
आईआईएल ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत में बनी वैक्सीन के हर बैच को बेचने या वितरित करने से पहले सेंट्रल ड्रग्स लेबोरेटरी द्वारा परीक्षण किया जाता है। रेबीज एक गंभीर वायरल बीमारी है जो सेंट्रल नर्वस सिस्टम को प्रभावित करती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, भारत में हर साल लगभग 18,000-20,000 लोग रेबीज से मरते हैं, जिनमें से अधिकांश कुत्तों के काटने से होते हैं।
