इटावा में कथावाचकों के साथ अभद्रता: अखिलेश यादव ने भाजपा पर साधा निशाना

सियासी रंग ले चुका इटावा का मामला
उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में कथावाचकों के साथ हुई कथित अभद्रता का मामला अब केवल कानून व्यवस्था तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि इसका राजनीतिक स्वरूप भी गहरा हो गया है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस मुद्दे पर भाजपा सरकार पर तीखा हमला किया है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' (पूर्व में ट्विटर) पर कई पोस्ट के माध्यम से योगी सरकार की मंशा पर सवाल उठाए और इसे यूपी की शांति के लिए खतरा बताया।
भाजपा पर आरोप
अखिलेश यादव ने आरोप लगाया कि भाजपा जानबूझकर 'प्लांटेड लोगों' के माध्यम से प्रदेश में घुसपैठ करवा रही है। उन्होंने कहा, "भाजपा अपने सेट किए हुए 'प्लांटेड लोगों' के नाम का दुरुपयोग कर पड़ोसी राज्यों से लोगों को बुलाकर उत्तर प्रदेश की सामाजिक एकता को तोड़ने की कोशिश कर रही है। लेकिन प्रदेश का समाज नकारात्मक तत्वों के कारण बंटेगा नहीं, बल्कि और मजबूत होगा।"
दिल्लीवालों का भाजपा पर विश्वास नहीं
सपा प्रमुख ने भाजपा नेतृत्व पर कटाक्ष करते हुए कहा, "क्या आज उत्तर प्रदेश में एक भी ऐसा भाजपाई नहीं बचा जिस पर दिल्लीवाले भरोसा कर सकें?" उन्होंने कहा कि भाजपा की यह रणनीति लखनऊ के लिए सीधी चुनौती है, जहां बाहर से अराजक तत्व बुलाकर प्रदेश का अमन-चैन बिगाड़ा जा रहा है।
FIR और गिरफ्तारी की मांग
अखिलेश ने योगी सरकार से सवाल किया कि यदि ऐसे अराजक तत्व प्रदेश में घुसकर शांति भंग कर रहे हैं, तो उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार क्यों नहीं किया जा रहा? उन्होंने चेतावनी दी कि यदि कार्रवाई नहीं हुई, तो ऐसे तत्व और बढ़ेंगे और जनता को लगेगा कि भाजपा की सरकार केवल कागज़ों पर रह गई है।
ढोलक अपमान कांड और पीडीए का आह्वान
अखिलेश यादव ने कथित रूप से एक कलाकार की ढोलक छीने जाने की घटना पर भी गहरी नाराज़गी जताई। उन्होंने कहा, "कुछ प्रभुत्ववादी लोगों ने उस कलाकार को भी नहीं बख्शा जो अपनी थाप से दुनिया देखता है। उनकी ढोलक छीन ली गई और उस पर आरोप लगा दिए गए।" उन्होंने इसे 'इटावा कथावाचन पीडीए अपमान कांड' बताया और कहा कि पूरा पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) समाज इसके विरोध में एकजुट होकर आवाज़ बुलंद कर रहा है।
पीडीए का सामाजिक उद्घोष
अखिलेश यादव ने अंत में कहा कि पीडीए कोई प्रतिशोध की भावना नहीं, बल्कि सोच के परिवर्तन का सामाजिक उद्घोष है। उन्होंने इसे 'सामाजिक न्याय के राज' की दिशा में एक सकारात्मक आंदोलन बताया और कहा कि पीड़ा, दुख और अपमान के खिलाफ पीडीए की ढोलक अब गूंज बन चुकी है।