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ईद-ए-मिलाद उन नबी 2025: इस्लाम में जश्न का महत्व और मान्यता

ईद-ए-मिलाद उन नबी 2025 का उत्सव इस्लाम में महत्वपूर्ण है, लेकिन इसके मनाने के तरीके में मतभेद हैं। जानें कि पैगंबर मुहम्मद का जन्म और निधन इस दिन क्यों महत्वपूर्ण है, और इस्लाम में जश्न मनाने की मान्यता क्या है। क्या आतिशबाजी और जुलूस इस दिन उचित हैं? इस लेख में हम इस दिन के सही तरीके और इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार इसे मनाने के बारे में चर्चा करेंगे।
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ईद-ए-मिलाद उन नबी 2025: इस्लाम में जश्न का महत्व और मान्यता

ईद-ए-मिलाद उन नबी का उत्सव

दुनिया भर के मुसलमान ईद-ए-मिलाद उन नबी को बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं। यह दिन इस्लाम के अंतिम पैगंबर, मुहम्मद साहब की जन्मतिथि और निधन का दिन माना जाता है। विभिन्न इस्लामी समुदाय इस दिन को अपने-अपने तरीके से मनाते हैं। कुछ लोग इस दिन विशेष इबादत करते हैं, जबकि अन्य खुशी में जश्न मनाते हैं और आतिशबाजी करते हैं। लेकिन क्या यह जश्न इस्लाम की शिक्षाओं के अनुसार उचित है? आइए जानते हैं इस्लाम में इसकी क्या मान्यता है।


पैगंबर मुहम्मद का जन्म और निधन

इस्लामी विद्वान मुफ्ती सलाउद्दीन कासमी के अनुसार, एक मान्यता है कि पैगंबर मुहम्मद साहब का जन्म 12 रबी-उल-अव्वल को हुआ था। इस खुशी में कई मुसलमान इस दिन को धूमधाम से मनाते हैं। हालांकि, एक अन्य मान्यता के अनुसार, इसी दिन पैगंबर साहब का निधन भी हुआ था। इसलिए कुछ लोग इस दिन को जश्न के बजाय शोक के रूप में देखते हैं, जिससे इस दिन को मनाने के तरीकों में भिन्नता आती है।


इस्लाम में जश्न मनाने की मान्यता

मुफ्ती सलाउद्दीन कासमी बताते हैं कि पैगंबर मुहम्मद साहब के निधन के बाद उनके सहाबा ने मिलाद उन नबी को उत्सव के रूप में नहीं मनाया था। बाद में कुछ लोगों ने इसे उत्सव की तरह मनाना शुरू किया, लेकिन इस्लामी हदीस में इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता। इस्लाम में इस दिन को त्योहार की तरह मनाना अनिवार्य नहीं माना जाता।


आतिशबाजी और जुलूस पर इस्लाम का दृष्टिकोण

इस्लामी शरीयत के अनुसार, मिलाद उन नबी के दिन जश्न मनाना, आतिशबाजी करना, खाना बांटना या इसे त्योहार की तरह देखना सही नहीं है। जुलूस निकालना या डीजे बजाना भी शरीयत के खिलाफ माना जाता है। इस दिन की सही प्रथा यह है कि पैगंबर मुहम्मद साहब पर अधिक से अधिक दुरूद भेजा जाए और रोजमर्रा की तरह इबादत की जाए।


इस दिन क्या करना चाहिए?

मिलाद उन नबी के दिन भक्तों को पैगंबर साहब की शिक्षाओं का पालन करना चाहिए। इस दिन विशेष रूप से दुरूद पढ़ना और इबादत में समय बिताना उचित है। आतिशबाजी, जुलूस या शोर-शराबे से बचकर इस दिन को सादगी और श्रद्धा के साथ मनाना चाहिए। यह तरीका न केवल इस्लामी मान्यताओं के अनुरूप है, बल्कि पैगंबर साहब के प्रति सच्ची श्रद्धा को भी दर्शाता है।