उत्तर प्रदेश में मतदाता प्रपत्रों की कमी: भाजपा की चुनौतियाँ
मतदाता सूची की पुनरीक्षण प्रक्रिया में समस्याएँ
मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण, जिसे एसआईआर कहा जाता है, में भाजपा शासित राज्यों में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए थी। बिहार का उदाहरण सामने है, जहां जनता दल यू और भाजपा की सरकार ने चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित समय सीमा के अनुसार कार्य किया। हालांकि, दूसरे चरण में कई भाजपा शासित राज्यों में समस्याएँ उत्पन्न हुईं। उत्तर प्रदेश का मामला सबसे चौंकाने वाला रहा। चुनाव आयोग ने चार नवंबर को 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एसआईआर का कार्य आरंभ किया था, और पहले चरण का समापन चार दिसंबर को होना था। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर आयोग ने समय सीमा को एक सप्ताह बढ़ाया। इसके बाद, उत्तर प्रदेश के मुख्य चुनाव अधिकारी ने आयोग से दो सप्ताह का और विस्तार मांगा, जिसे स्वीकार कर लिया गया और समय सीमा 26 दिसंबर कर दी गई।
भाजपा में घबराहट और मुख्यमंत्री का निर्देश
हालांकि, समय बढ़ाने का अनुरोध राज्य के चुनाव अधिकारी ने किया था, लेकिन भाजपा में घबराहट स्पष्ट थी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बताया कि चार करोड़ से अधिक मतदाता प्रपत्र वापस नहीं आए हैं। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस पर सवाल उठाया, यह पूछते हुए कि यदि चुनाव आयोग एसआईआर का कार्य कर रहा है, तो मुख्यमंत्री को यह जानकारी कैसे मिल रही है। 15 दिसंबर तक चार करोड़ मतदाता प्रपत्र वापस नहीं आए थे। इसके बाद, मुख्यमंत्री ने पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को निर्देश दिया कि वे घर-घर जाकर लोगों को प्रपत्र लौटाने के लिए प्रेरित करें।
संगठनात्मक बैठक और चुनावी तैयारी
20 दिसंबर तक स्थिति यह थी कि तीन करोड़ प्रपत्र अभी भी लौटे नहीं थे। राज्य में कुल 15 करोड़ से अधिक मतदाता हैं, जिनमें से लगभग 12 करोड़ प्रपत्र लौटाए गए थे। इस पर एक बैठक आयोजित की गई, जिसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, दोनों उप मुख्यमंत्री और नए प्रदेश अध्यक्ष शामिल हुए। सभी विधायकों और सांसदों को भी बुलाया गया और उन्हें संगठनात्मक कार्यों में सक्रिय रहने की जिम्मेदारी दी गई। यह सवाल उठता है कि उत्तर प्रदेश जैसे राजनीतिक रूप से जागरूक राज्य में इतनी बड़ी संख्या में मतदाता प्रपत्र क्यों नहीं लौटे। पश्चिम बंगाल में अनुपातिक रूप से सबसे कम नाम कटे हैं, क्योंकि वहां सरकार और संगठन दोनों ने एसआईआर के बाद से सक्रियता दिखाई। उत्तर प्रदेश में सरकार और संगठन के बीच तालमेल की कमी के कारण भाजपा को सही तरीके से कार्य करने में कठिनाई हुई।
