उद्धव और राज ठाकरे का एकजुटता: महाराष्ट्र में हिंदी को लेकर उठे सवाल

हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में लागू करने का विरोध
महाराष्ट्र सरकार द्वारा कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों के लिए हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में फिर से लागू करने के निर्णय के खिलाफ आयोजित विजय रैली में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने दशकों बाद एक मंच साझा किया। इस अवसर पर दोनों नेताओं ने इस मुद्दे पर एकजुटता दिखाई। हालांकि, अगले दिन उद्धव सेना ने स्पष्ट किया कि उनका विरोध केवल प्राथमिक शिक्षा में हिंदी की अनिवार्यता तक सीमित है, न कि हिंदी भाषा के प्रति।
संजय राउत का बयान
संजय राउत ने रखा उद्धव सेना का पक्ष
उद्धव सेना के वरिष्ठ नेता और सांसद संजय राउत ने रविवार को कहा, “हम हिंदी भाषा के खिलाफ नहीं हैं, हमारा विरोध केवल जबरन थोपने के खिलाफ है। महाराष्ट्र में हिंदी फिल्में, नाटक और संगीत का बड़ा योगदान है। हमने कभी किसी को हिंदी बोलने से नहीं रोका।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उनका विरोध केवल प्राथमिक विद्यालयों तक सीमित है, और वह भी भाषा थोपने की नीति को लेकर।
स्टालिन को शुभकामनाएं
स्टालिन को शुभकामनाएं
संजय राउत ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के हिंदी विरोधी अभियान का सम्मान करते हुए उन्हें “उनकी लड़ाई के लिए शुभकामनाएं” दीं। हालांकि, उन्होंने यह स्पष्ट किया कि उद्धव और राज ठाकरे की लड़ाई का दायरा उतना व्यापक नहीं है। उनका उद्देश्य महाराष्ट्र में भाषा की विविधता और स्वायत्तता को बनाए रखते हुए केवल प्राथमिक शिक्षा में जबरन हिंदी थोपने से रोकना है।
ठाकरे बंधुओं का पुनर्मिलन
स्टालिन का समर्थन
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' (पूर्व में ट्विटर) पर ठाकरे बंधुओं के रुख का स्वागत किया। उन्होंने लिखा, “भाषा अधिकारों के लिए हमारी पीढ़ी दर पीढ़ी की लड़ाई अब तमिलनाडु की सीमाओं को पार कर महाराष्ट्र तक पहुंच गई है। मुंबई में आयोजित विजय रैली में भाई उद्धव ठाकरे का भाषण और जनसमर्थन बेहद प्रेरणादायक था।”
ठाकरे बंधुओं का पुनर्मिलन
लगभग बीस वर्षों में पहली बार उद्धव ठाकरे और मनसे प्रमुख राज ठाकरे एक मंच पर नजर आए, और उन्होंने एक साझा मुद्दे भाषाई स्वतंत्रता पर एकजुटता दिखाई। यह मुलाकात राजनीतिक हलकों में काफी प्रतीकात्मक मानी जा रही है, हालांकि संजय राउत के बयान से यह भी स्पष्ट हो गया कि उनकी यह साझेदारी अब तक केवल शिक्षा क्षेत्र में हिंदी के थोपे जाने तक ही सीमित है।