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उद्धव और राज ठाकरे का ऐतिहासिक मिलन: महाराष्ट्र की राजनीति में नया मोड़

महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया मोड़ देखने को मिल रहा है, जब उद्धव और राज ठाकरे एक मंच पर आए। इस ऐतिहासिक मिलन ने राजनीतिक विश्लेषकों के बीच चर्चा का विषय बना दिया है। राज ठाकरे ने भाषाई मुद्दों पर अपने विचार साझा किए, जबकि संजय राउत ने इसे एक उत्सव की तरह बताया। क्या यह पुनर्मिलन महाराष्ट्र की राजनीति में कोई बड़ा बदलाव लाएगा? जानें इस महत्वपूर्ण घटनाक्रम के बारे में।
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उद्धव और राज ठाकरे का ऐतिहासिक मिलन: महाराष्ट्र की राजनीति में नया मोड़

उद्धव और राज ठाकरे का मंच साझा

उद्धव और राज ठाकरे: महाराष्ट्र की राजनीतिक स्थिति में एक महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिल रहा है। दो प्रतिकूल भाई, उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे, एक ही मंच पर आ रहे हैं। इस घटनाक्रम ने राज्य की राजनीति में हलचल मचा दी है। दोनों भाई वर्ली में मराठी विजय दिवस के अवसर पर एक साथ मंच साझा कर रहे हैं, और राजनीतिक विश्लेषक इस बात पर विचार कर रहे हैं कि क्या यह मिलन महाराष्ट्र की राजनीति में कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन लाएगा?


राज ठाकरे का बयान

राज ठाकरे ने क्या कहा?

राज ठाकरे ने इस अवसर पर कहा कि, गैर-हिंदी भाषी राज्य अधिक प्रगतिशील हैं और हमें हिंदी सीखने की बजाय मराठी पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि सभी भाषाएं महत्वपूर्ण हैं, जैसे मराठी, तमिल, बंगाली और हिंदी। ठाकरे ने यह भी कहा कि हमें अपनी भाषा पर गर्व होना चाहिए और किसी भी भाषा को सीखने में कोई बुराई नहीं है।


परिवार के साथ कार्यक्रम में शामिल

परिवार के साथ उपस्थित रहे राज ठाकरे

राज ठाकरे अपनी पत्नी शर्मिला और बच्चों अमित और उर्वशी के साथ कार्यक्रम में शामिल हुए। वहीं, उद्धव ठाकरे भी अपनी पत्नी रश्मि और बेटों आदित्य और तेजस के साथ वहां पहुंचे। इसके अलावा, यह भी बताया गया है कि दोनों भाई वर्ली में 'विजय सभा' में शामिल होने से पहले बाल ठाकरे के स्मारक 'स्मृति स्थल' का दौरा कर सकते हैं।


संजय राउत की प्रतिक्रिया

संजय राउत का बयान

रैली के संबंध में शिवसेना (यूबीटी) के सांसद संजय राउत ने कहा, 'यह महाराष्ट्र के लिए एक उत्सव की तरह है कि ठाकरे परिवार के दो प्रमुख नेता, जो अपनी राजनीतिक विचारधाराओं के कारण अलग हो गए थे, 20 साल बाद एक मंच पर आ रहे हैं। यह निश्चित रूप से मराठी मानुस को नई दिशा देगा।'


राजनीतिक पुनर्मिलन का महत्व

इस पुनर्मिलन को एक राजनीतिक भूकंप के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) लंबे समय से अलग-अलग रास्तों पर चल रही थीं। ठाकरे भाइयों ने केंद्र द्वारा लाए गए त्रि-भाषा फॉर्मूले का विरोध किया, जिसके कारण राज्य सरकार को प्रस्तावित नीति को स्थगित करना पड़ा।