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उप राष्ट्रपति चुनाव में सत्तापक्ष की जीत की उम्मीदें बरकरार

उप राष्ट्रपति चुनाव के परिणाम ने सत्ताधारी दल की जीत की उम्मीदों को बरकरार रखा है। इस चुनाव में किसी अप्रत्याशित नतीजे की संभावना नहीं थी। वाईएसआर कांग्रेस ने सरकार के उम्मीदवार का समर्थन किया, जबकि बीजू जनता दल और भारत राष्ट्र समिति ने मतदान से दूरी बना ली। जानें बीजद और बीआरएस की स्थिति और उनके पीछे के कारण।
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उप राष्ट्रपति चुनाव में सत्तापक्ष की जीत की उम्मीदें बरकरार

उप राष्ट्रपति चुनाव के परिणाम

उप राष्ट्रपति के चुनाव में परिणाम वही रहे, जैसा कि अपेक्षित था। किसी ने भी अप्रत्याशित नतीजों की आशा नहीं की थी। स्वतंत्र भारत के इतिहास में, सत्ताधारी दल का उप राष्ट्रपति उम्मीदवार कभी भी चुनाव नहीं हारा है। एचडी देवगौड़ा के समय में खड़े किए गए उम्मीदवार कृष्णकांत ने भी बड़े अंतर से जीत हासिल की थी। इसलिए, नरेंद्र मोदी के उम्मीदवार की हार की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। नतीजे उम्मीद के अनुसार आए, और पार्टियों की स्थिति भी उसी दिशा में रही। वाईएसआर कांग्रेस ने सरकार के उम्मीदवार का समर्थन किया, जबकि बीजू जनता दल और भारत राष्ट्र समिति ने मतदान से दूरी बना ली।


बीजद और बीआरएस की स्थिति

बीजू जनता दल और भारत राष्ट्र समिति ने मतदान से दूरी बनाने के अपने-अपने कारण बताए हैं। चंद्रशेखर राव की पार्टी बीआरएस भाजपा का समर्थन कर सकती थी, लेकिन हाल ही में पार्टी के भीतर इस मुद्दे पर विरोध चल रहा था। चंद्रशेखर राव की बेटी कविता ने आरोप लगाया कि उनके भाई केटी रामाराव पार्टी को भाजपा के साथ ले जाने की कोशिश कर रहे हैं। यदि बीआरएस उप राष्ट्रपति चुनाव में समर्थन देती, तो भाजपा के साथ जाने के आरोपों की पुष्टि होती। कांग्रेस के साथ जाने का सवाल ही नहीं था, क्योंकि इससे कांग्रेस की स्थिति और मजबूत होती। ओडिशा में भी हालात बदले हुए हैं। 10 वर्षों तक केंद्र में भाजपा का समर्थन करने वाले नवीन पटनायक अब उसका समर्थन नहीं कर सकते, क्योंकि भाजपा ने पिछले चुनाव में बीजद को हराया। कांग्रेस के साथ नहीं जाने का कारण वही पुराना है, बीजद को हमेशा कांग्रेस के पुनर्जीवित होने का खतरा सताता है।