उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा: क्या है इसके पीछे की सियासी कहानी?

धनखड़ का इस्तीफा और उसके कारण
22 जुलाई को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया, जिसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने स्वीकार कर लिया। उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया, लेकिन विपक्ष ने इसे राजनीतिक दबाव का परिणाम बताया। कांग्रेस नेता सुखदेव भगत ने कहा कि यह इस्तीफा पहले से तय था और अचानक नहीं आया।
महाभियोग का नोटिस और धनखड़ की भूमिका
धनखड़ ने स्वीकार किया था नोटिस
संसद के मानसून सत्र के पहले दिन, विपक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के जज यशवंत वर्मा को हटाने के लिए महाभियोग का नोटिस राज्यसभा में पेश किया। यह कदम जस्टिस वर्मा के घर से बड़ी मात्रा में नकदी मिलने के बाद उठाया गया। उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने इस नोटिस को स्वीकार कर आगे की कार्रवाई के निर्देश दिए।
फोन कॉल से उपजी विवाद की स्थिति
फोन कॉल से पैदा हुआ विवाद
एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, इस घटनाक्रम के बाद केंद्र सरकार ने उपराष्ट्रपति को फोन किया, जिसमें इस नोटिस पर चर्चा हुई। कहा जा रहा है कि बातचीत में तीखी बहस हुई, और धनखड़ ने अपने संवैधानिक अधिकारों का हवाला दिया। इसके तुरंत बाद उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की अटकलें तेज हो गईं, जिससे पहले भी विपक्ष उन्हें निशाने पर ले चुका था। शायद इसी कारण उन्होंने इस्तीफा देना उचित समझा।
सत्तापक्ष और विपक्ष की सहमति पर विवाद
वर्मा के खिलाफ दोनों पक्ष, पर श्रेय की लड़ाई
दिलचस्प बात यह है कि जस्टिस वर्मा को हटाने के लिए सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ही तैयार हैं। लोकसभा में सत्तापक्ष के 152 सांसदों और राज्यसभा में विपक्ष के 63 सांसदों ने महाभियोग प्रस्ताव का समर्थन किया। लेकिन असली विवाद इस बात को लेकर है कि इसका श्रेय किसे मिले। यही कारण है कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ आम सहमति के बावजूद राजनीति और टकराव की स्थिति बन गई।
धनखड़ के इस्तीफे के पीछे की जटिलताएँ
धनखड़ के इस्तीफे के पीछे कई वजह
धनखड़ का इस्तीफा केवल स्वास्थ्य कारण नहीं, बल्कि संवैधानिक जिम्मेदारियों, राजनीतिक दबाव और क्रेडिट की सियासत के बीच एक बड़ा संकेत बनकर सामने आया है। अब सभी की निगाहें नए उपराष्ट्रपति के चयन और संसद में आगे की कार्यवाही पर टिकी हैं।