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उपराष्ट्रपति धनखड़ ने संविधान की प्रस्तावना में बदलाव पर उठाए सवाल

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कर्नाटक में एक कार्यक्रम के दौरान संविधान की प्रस्तावना में बदलाव पर गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने आपातकाल के दौरान किए गए परिवर्तनों को लोकतंत्र के लिए अन्याय बताया और डॉ. अंबेडकर के विचारों की प्रासंगिकता पर जोर दिया। इस मुद्दे पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और कांग्रेस के नेताओं ने भी अपनी प्रतिक्रियाएँ दी हैं। जानें इस महत्वपूर्ण विषय पर और क्या कहा गया।
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संविधान की प्रस्तावना में बदलाव पर उपराष्ट्रपति का बयान

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कर्नाटक के पूर्व एमएलसी और लेखक डीएस वीरैया द्वारा संकलित पुस्तक 'अम्बेडकर के संदेश' के विमोचन समारोह में कहा कि आपातकाल भारतीय लोकतंत्र का सबसे कठिन समय था, जब नागरिकों को जेलों में डाल दिया गया और उनके मौलिक अधिकारों का हनन किया गया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हमें यह समझने की आवश्यकता है कि डॉ. अंबेडकर ने संविधान के निर्माण में कितनी मेहनत की। संविधान निर्माताओं ने प्रस्तावना को सही तरीके से जोड़ा था, लेकिन इसे उस समय बदला गया जब लोग बंधन में थे। धनखड़ ने कहा कि यह कितना बड़ा अन्याय है कि जो चीज बदली नहीं जा सकती, उसे बिना किसी उचित कारण के बदल दिया गया।


उपराष्ट्रपति ने बताया कि संविधान की प्रस्तावना को 1976 में 42वें संविधान संशोधन के तहत संशोधित किया गया, जिसमें समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता जैसे शब्द जोड़े गए। उन्होंने कहा कि आपातकाल के दौरान इन शब्दों का जोड़ना संविधान निर्माताओं की सोच के साथ धोखा है और यह हमारी हजारों वर्षों की सभ्यता का अपमान है। धनखड़ ने अंबेडकर के संदेशों की वर्तमान प्रासंगिकता पर भी प्रकाश डाला, यह कहते हुए कि डॉ. भीमराव अंबेडकर हमारे दिलों में हैं और उनके विचार आज भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।


इस बीच, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने संविधान की प्रस्तावना में किए गए परिवर्तनों के लिए इंदिरा गांधी सरकार से माफी मांगने की मांग की। उन्होंने कहा कि आपातकाल के दौरान जो शब्द जोड़े गए, वे कभी भी डॉ. अंबेडकर द्वारा तैयार संविधान का हिस्सा नहीं थे। होसबाले ने कहा कि आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों का हनन किया गया और यह लोकतंत्र के लिए एक परीक्षा थी।


राहुल गांधी ने भी इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया दी, यह कहते हुए कि आरएसएस को संविधान से चिढ़ है क्योंकि यह समानता और धर्मनिरपेक्षता की बात करता है। उन्होंने आरोप लगाया कि आरएसएस और भाजपा का असली एजेंडा संविधान को कमजोर करना है।


संविधान की प्रस्तावना में बदलाव पर चर्चा की आवश्यकता पर जोर देते हुए, राहुल गांधी ने कहा कि यदि डॉ. अंबेडकर ने इन शब्दों को शामिल करने की आवश्यकता नहीं समझी, तो क्या इसका मतलब यह है कि वे मनुवादी थे? उन्होंने कहा कि संविधान में बदलाव पर विचार करना आज की आवश्यकता है।


उपराष्ट्रपति धनखड़ ने संविधान की प्रस्तावना में बदलाव पर उठाए सवाल


-इरविन खन्ना, मुख्य संपादक, दैनिक उत्तम हिन्दू।