एच-1बी वीजा की नई फीस नीति से भारतीय पेशेवरों में चिंता

अमेरिकी राष्ट्रपति का नया निर्णय
हाल ही में, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीजा के लिए एक नई फीस नीति लागू की है, जिसके अनुसार नए आवेदकों को एक बार में 1 लाख डॉलर का भुगतान करना होगा। इस निर्णय ने भारतीय समुदाय और आईटी क्षेत्र में चिंता की लहर पैदा कर दी है। भारत से अमेरिका जाने वाले पेशेवरों का मानना है कि यह कदम न केवल रोजगार के अवसरों को सीमित करेगा, बल्कि अमेरिकी कंपनियों के लिए भी नई चुनौतियाँ उत्पन्न करेगा।
शशि थरूर की प्रतिक्रिया
शशि थरूर ने इस निर्णय को अमेरिकी घरेलू राजनीति से जोड़ा है। उनके अनुसार, ट्रंप अपने 'MAGA' (Make America Great Again) समर्थकों को आकर्षित करने के लिए एंटी-इमिग्रेशन नीतियों को लागू कर रहे हैं। थरूर का कहना है कि ट्रंप का मानना है कि एच-1बी वीजा के माध्यम से भारतीय पेशेवर कम वेतन पर काम करके अमेरिकी नागरिकों के अवसरों को छीन रहे हैं। इसी धारणा को भुनाने के लिए यह निर्णय लिया गया है।
भारतीय पेशेवरों पर प्रभाव
थरूर ने चेतावनी दी है कि यह नीति सीधे तौर पर भारतीय आईटी पेशेवरों को प्रभावित करेगी, जो अमेरिका में एच-1बी वीजा धारकों का 70% हिस्सा हैं। उन्होंने कहा कि अब केवल उच्च स्तर के, अपूरणीय और महंगे पेशेवरों को ही कंपनियां इस भारी फीस के साथ नियुक्त करेंगी। इसका मतलब है कि मध्यम और प्रारंभिक स्तर की नौकरियों में भारतीयों की भागीदारी कम हो जाएगी।
ट्रंप का तर्क और सुरक्षा मुद्दे
ट्रंप प्रशासन ने एच-1बी वीजा को 'दुरुपयोग' और 'राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे' से जोड़ा है। ट्रंप का कहना है कि यह वीजा अमेरिकी नागरिकों के रोजगार को छीन रहा है और कंपनियां इसे लागत कम करने के लिए इस्तेमाल कर रही हैं। थरूर ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह तर्क भ्रामक है और असली उद्देश्य राजनीतिक लाभ उठाना है।
भारतीय समुदाय की चिंताएँ
अमेरिका में भारतीय मूल का एक बड़ा समुदाय निवास करता है। नई फीस नीति ने उनके बीच असुरक्षा की भावना को बढ़ा दिया है। आईटी कंपनियों को भी चिंता है कि इतनी ऊंची फीस उनके संचालन को प्रभावित कर सकती है और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में वे पिछड़ सकती हैं। थरूर ने कहा कि यह कदम भारतीय पेशेवरों और अमेरिकी कंपनियों दोनों के लिए हानिकारक साबित होगा।