Newzfatafatlogo

ओवैसी और तसलीमा: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बहस

असदुद्दीन ओवैसी ने हाल ही में एक सभा में ‘आई लव मुहम्मद’ के पोस्टर के बारे में सवाल उठाया, जिससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बहस छिड़ गई। तसलीमा नसरीन के विचारों के संदर्भ में, यह चर्चा इस बात पर केंद्रित है कि क्या सभी को अपने विचार व्यक्त करने का समान अधिकार है। क्या मुहम्मद की आलोचना करना उतना ही वैध है जितना कि उनसे प्रेम जताना? यह लेख इस जटिल मुद्दे पर गहराई से विचार करता है।
 | 
ओवैसी और तसलीमा: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बहस

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सवाल

असदुद्दीन ओवैसी ने 6 अक्टूबर को बहादुरगंज में एक सभा में सवाल उठाया: अगर हम आई लव मुहम्मदका पोस्टर लेकर चलें तो इसमें क्या गलत है?” इसका उत्तर यह है कि तसलीमा नसरीन का कथन जब तक इस्लाम रहेगा, आतंकवाद रहेगाका पोस्टर लेकर चलना भी उतना ही वैध है। इसका मतलब यह है कि मुहम्मद की आलोचना करना उतना ही सही है जितना मुहम्मद से प्रेम करना। दोनों अधिकार समान हैं। यह एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जैसा कि तसलीमा ने कहा: कोई भी व्यक्ति आलोचना से ऊपर नहीं है — न कोई इंसान, न कोई संत, न कोई मसीहा, न कोई प्रोफेट, न कोई भगवान। दुनिया को बेहतर बनाने के लिए आलोचनात्मक परीक्षण आवश्यक है।


2 अक्टूबर को हैदराबाद में ओवैसी ने कहा: “इस देश में ‘आई लव मोदी’ कहने की आजादी है, लेकिन ‘आई लव मुहम्मद’ नहीं कह सकते। आप इस देश को कहाँ ले जा रहे हैं? यदि कोई ‘आई लव मोदी’ कहे तो मीडिया खुश हो जाएगा, लेकिन ‘आई लव मुहम्मद’ कहने पर आपत्ति होगी।”


बेशक, हर व्यक्ति को मोदी और मुहम्मद दोनों से प्रेम जताने का अधिकार है। इसमें कोई विवाद नहीं है। लेकिन यह तुलना गलत है। ‘मुहम्मद से प्रेम’ की तुलना मोदी से नहीं, बल्कि तसलीमा नसरीन या सलमान रुश्दी से होनी चाहिए। क्या सभी को तसलीमा से प्रेम जताने, ‘आई लव तसलीमा’ के पोस्टर लगाने की आजादी होनी चाहिए, खासकर मुसलमानों को?


तसलीमा ने इस्लामी ग्रंथों का अध्ययन करके अपने निबंध ‘बिकॉज ऑफ रिलीजन’ (2003) में यह निष्कर्ष निकाला कि “मुहम्मद ने कुरान अपने स्वार्थ के लिए लिखी थी।” इसीलिए वह इस्लाम से उदासीन हो गईं।


इसलिए सही तुलना यह है कि जैसे मोदी या मुहम्मद से प्रेम करने का अधिकार सभी को है, वैसे ही उनकी आलोचना करने का भी अधिकार है। जैसा तसलीमा ने कहा: “कोई व्यक्ति आलोचना से ऊपर नहीं है।”


जब तक हर भारतीय इस बात को स्वीकार नहीं करता कि सभी को अपनी राय रखने का अधिकार है, तब तक केवल मोदी या मुहम्मद पर ध्यान केंद्रित करना एकतरफा होगा। कोई भी ऐसा अधिकार नहीं रख सकता जिससे वह दूसरों को वंचित करे। यदि ओवैसी किसी व्यक्ति या विचार से प्रेम का अधिकार मांगते हैं, तो उन्हें यह भी स्वीकार करना होगा कि दूसरों को उसी व्यक्ति या विचार को नापसंद करने का भी अधिकार है।


अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एकतरफा नहीं हो सकती। जैसे, ‘आई लव मुहम्मद’ का विषय है, वैसे ही ‘आई डोन्ट लव मुहम्मद’ कहने का भी अधिकार होना चाहिए। केवल मीठी बातें कहने की अनुमति नहीं होनी चाहिए। महान लेखक जॉर्ज ऑरवेल ने कहा था: “यदि स्वतंत्रता का कोई अर्थ है, तो यह है कि लोगों को वह बात कहने का अधिकार हो जिसे वे सुनना नहीं चाहते।”


यह उक्ति ‘आई लव मुहम्मद’ को सही परिप्रेक्ष्य में रखती है। मुहम्मद की प्रमाणिक जीवनी, सीरा, इस पर आधारित है। इसे पढ़कर कई पाठक मुहम्मद के विचारों को प्रेम करने योग्य नहीं पाते। तसलीमा केवल एक उदाहरण हैं।


इसके अलावा, मुहम्मद के राजनीतिक निर्देशों पर भी विचार करने की आवश्यकता है, विशेषकर गैर-मुसलमानों के प्रति। ये निर्देश न्यायसंगत मूल्यांकन की मांग करते हैं। क्योंकि कई मुस्लिम नेता, जहां भी उन्हें अवसर मिलता है, इन्हीं निर्देशों को लागू करने का प्रयास करते हैं।


ओवैसी मुहम्मद से प्रेम की वैधता पर जोर देते हैं, लेकिन उनकी आलोचना की वैधता से इनकार करते हैं। यही असली समस्या है। इसे किसी समुदाय का ‘फेथ’ बताकर नहीं सुलझाया जा सकता।


इसलिए, मानवता की दो आचार-संहिता नहीं हो सकती। मुसलमानों को वह स्वर्णिम नियम मानना होगा जो सभी पर लागू होता है: “दूसरों के साथ वैसा ही करो जैसा तुम चाहते हो कि वे तुम्हारे साथ करें।”


ओवैसी को भी इस नियम का पालन करना चाहिए, जैसे तसलीमा या सलमान रुश्दी करते हैं। लेकिन अधिकांश मुस्लिम नेता विशेषाधिकार का अनुभव रखते हैं। वे अपने लिए ऊँचा और दूसरों के लिए नीचा व्यवहार करते हैं।


यह स्थिति अधिक दिन नहीं रह सकती। ओवैसी जैसे नेताओं को इसे न्यायसंगत रूप से देखना होगा। शिकायत और नाराजगी अब काम नहीं करेगी।


नई तकनीक ने मुसलमानों को सशक्त किया है। अब वे कुरान, हदीस, और सीरा को जानने के लिए केवल मुल्लों पर निर्भर नहीं हैं। इस्लामी मूल ग्रंथों की जानकारी अब हर भाषा में उपलब्ध है।


इसलिए, ओवैसी को यह सवाल का जवाब देना होगा कि जब उनके दल के कार्यकर्ताओं ने तसलीमा नसरीन पर हमला किया, तब क्या वैध था? आज यदि ओवैसी कानून का हवाला दे रहे हैं, तो दूसरों को भी वही अधिकार है।


अंत में, ओवैसी को यह सोचना चाहिए कि वे इस देश को कहाँ ले जाना चाहते हैं।