ओवैसी की नई रणनीति: बिहार में महागठबंधन में शामिल होने का प्रस्ताव

ओवैसी की बदलती छवि और नई राजनीतिक चाल
ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहाद उल मुसलमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने हाल के महीनों में अपनी राजनीतिक गतिविधियों से अपनी पार्टी और अपनी छवि में महत्वपूर्ण बदलाव लाया है। पहलगाम कांड के बाद, ओवैसी ने एक राष्ट्रवादी नेता के रूप में अपनी पहचान बनाई है। उन्होंने पाकिस्तान की कड़ी आलोचना की है, और इसके बाद केंद्र सरकार ने आतंकवाद और पाकिस्तान के मुद्दे पर एक डेलिगेशन भेजा, जिसमें ओवैसी भी शामिल थे। इस डेलिगेशन में उन्होंने विपक्षी नेताओं की तुलना में एक प्रभावी भूमिका निभाई, और विदेश मंत्रालय द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुसार अपनी बात रखी। उन्होंने इस्लामिक देशों के समक्ष पाकिस्तान को आतंकवाद फैलाने वाला देश बताया।
अब उनकी पार्टी ने बिहार में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है, जिससे उनकी पार्टी की छवि में स्थायी बदलाव आ सकता है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अख्तर उल ईमान ने लालू प्रसाद को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि एआईएमआईएम को महागठबंधन में शामिल किया जाए। उन्होंने कहा कि भाजपा विरोधी वोटों के बिखराव को रोकने के लिए यह आवश्यक है कि एआईएमआईएम गठबंधन का हिस्सा बने। हालांकि, राजद के राज्यसभा सांसद मनोज झा ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है, यह कहते हुए कि ओवैसी की पार्टी को बिहार चुनाव में नहीं लड़ना चाहिए और महागठबंधन की मदद करनी चाहिए।
इस स्थिति में, ओवैसी ने राजद और कांग्रेस दोनों को एक कठिन स्थिति में डाल दिया है। दोनों पार्टियां हमेशा से यह कहती रही हैं कि ओवैसी की पार्टी भाजपा की बी टीम है, जो हर बार राजद और कांग्रेस को हराने के लिए चुनाव लड़ती है। लेकिन इस बार ओवैसी ने तालमेल की पहल की है। यदि राजद और कांग्रेस इस तालमेल के लिए तैयार नहीं होते हैं, तो वे एआईएमआईएम पर भाजपा की बी टीम होने का आरोप नहीं लगा सकेंगे। इस प्रकार, राजद और कांग्रेस की स्थिति अब सांप छुछुंदर जैसी हो गई है। यदि वे तालमेल करते हैं, तो भाजपा को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का मौका मिलेगा, और यदि नहीं करते हैं, तो उन्हें अकेले चुनाव लड़ना होगा।