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कंबोडिया और थाईलैंड के बीच सांस्कृतिक संघर्ष: एक ऐतिहासिक दृष्टिकोण

कंबोडिया और थाईलैंड के बीच हालिया संघर्ष ने यह स्पष्ट कर दिया है कि दोनों देश अपनी प्राचीन संस्कृति और प्रतीकों की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। 28 जुलाई को मलेशिया की मध्यस्थता में युद्धविराम पर सहमति के साथ, यह घटनाक्रम एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक दृष्टिकोण को उजागर करता है। जानें इस संघर्ष के पीछे की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के बारे में।
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कंबोडिया और थाईलैंड के बीच सांस्कृतिक संघर्ष: एक ऐतिहासिक दृष्टिकोण

संस्कृति की रक्षा के लिए संघर्ष

युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता, यह सत्य है। लेकिन हालिया घटनाओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कंबोडिया और थाईलैंड अपनी प्राचीन संस्कृति और प्रतीकों पर गर्व करते हैं और उनकी रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। पिछले सौ वर्षों से इन दोनों देशों के बीच यह विवाद जारी है।


28 जुलाई को, कंबोडिया और थाईलैंड ने मलेशिया की मध्यस्थता में ‘तुरंत और बिना शर्त युद्धविराम’ पर सहमति जताई। दोनों देशों के बीच हालिया संघर्ष इतना बढ़ गया था कि मिसाइलों और तोपों का उपयोग होने लगा। इस टकराव का केंद्र भगवान शिव को समर्पित ‘प्रासात प्रीह विहेअर’ मंदिर है, जिसे 11-12वीं सदी में हिंदू-बौद्ध खमेर साम्राज्य द्वारा निर्मित किया गया था।


‘प्रासात प्रीह विहेअर’ नाम तीन शब्दों से मिलकर बना है। ‘प्रासात’ संस्कृत के प्रासाद से निकला है, जिसका अर्थ है विशाल भवन। यह कंबोडियाई और थाई भाषा में किसी राजमहल या मंदिर के लिए उपयोग होता है। ‘प्रीह’ का अर्थ पवित्र या प्रिय है, जो संस्कृत से प्रेरित है। ‘विहेअर’ संस्कृत के विहार से बना है, जिसका अर्थ है आवास या धार्मिक केंद्र। यह मंदिर एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है, जहां से चारों ओर का दृश्य अत्यंत रमणीय है। इसकी स्थापत्यकला अत्यंत सूक्ष्म और वैभवशाली है।


कंबोडिया और थाईलैंड मुख्यतः थेरवादा बौद्ध प्रधान देश हैं। विश्व में 50 करोड़ से अधिक बौद्ध अनुयायी हैं। चीन का दावा है कि लगभग 24 करोड़ बौद्ध मतावलंबी उसके देश में हैं, लेकिन यह भ्रामक है। बौद्ध धर्म का उद्गम स्थान प्राचीन भारत है। भगवान गौतम बुद्ध का जन्म नेपाल के लुंबिनी में हुआ था, और उनके जीवन से जुड़े प्रमुख तीर्थस्थल भारत में हैं।


भारत का सांस्कृतिक विस्तार सैकड़ों वर्ष पहले दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया तक फैला था, जहां आज भी हिंदू संस्कृति का गहरा प्रभाव है। कंबोडिया में भगवान विष्णु को समर्पित विशाल अंगकोरवाट मंदिर है, और थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक का अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा ‘सुवर्णभूमि’ कहलाता है।


चक्री वंश थाईलैंड का वर्तमान शासक राजघराना है, जिसकी शुरुआत 1782 में हुई थी। इस राजवंश के राजा अपने नाम के साथ ‘राम’ शब्द जोड़ते हैं। दक्षिण कोरिया में लगभग 60 लाख लोग अयोध्या की राजकुमारी सुरीरत्ना के वंशज मानते हैं।


इंडोनेशिया, जो आज दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम देश है, वहां भी हिंदू विरासत को सम्मान से देखा जाता है। वहां हिंदुओं की संख्या लगभग 2 प्रतिशत है, फिर भी हजारों मंदिर हैं।


मलेशिया में 63 प्रतिशत मुसलमान हैं, फिर भी वहां हिंदू संस्कृति के कई चिह्न मौजूद हैं। इस पृष्ठभूमि में, कंबोडिया-थाईलैंड घटनाक्रम एक सुखद संदेश लेकर आया है।