कांग्रेस के नेताओं की विदेश यात्रा: क्या यह देशहित में है?

कांग्रेस के नेताओं की भूमिका
तीन दशक पहले अटल बिहारी वाजपेयी ने जो कार्य विपक्ष में रहते हुए किया था, वही जिम्मेदारी अब कांग्रेस के सलमान खुर्शीद, शशि थरूर और मनीष तिवारी निभा रहे हैं। हालांकि, कांग्रेस का एक महत्वपूर्ण हिस्सा, जिसमें पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी शामिल हैं, इस राष्ट्रीय प्रयास को लेकर असंतुष्ट हैं और अपने ही नेताओं को भारत का पक्ष रखने के लिए आलोचना कर रहे हैं। यह स्थिति देश और कांग्रेस दोनों के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है।
क्यों नाराज हैं कांग्रेस के नेता?
कांग्रेस नेतृत्व सलमान खुर्शीद और शशि थरूर से क्यों नाराज है? क्या उन्हें पार्टी के एक वर्ग ने किसी 'अपराध' का दोषी मान लिया है? ये नेता विदेश में ऐतिहासिक 'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत पाकिस्तान के खिलाफ भारत का पक्ष रख रहे हैं। क्या यह सही है कि किसी कांग्रेसी को संकट के समय में भारत का प्रतिनिधित्व करने से रोका जाए? याद रहे कि 1994 में पाकिस्तान ने कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप लगाकर भारत को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में घेरने की कोशिश की थी।
अटलजी का उदाहरण
तब के प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर अटल बिहारी वाजपेयी को भारतीय प्रतिनिधिमंडल का मुखिया बनाकर जिनेवा भेजा था। उस समय पाकिस्तान का झूठ अटलजी की बुद्धिमत्ता और नरसिम्हा राव की कूटनीति के सामने टिक नहीं पाया। तब न तो अटलजी कांग्रेसी बने और न ही नरसिम्हा राव भाजपाई।
महाभारत का संदर्भ
महाभारत में एक प्रसंग है जब पांडव वनवास में थे और दुर्योधन को बंदी बना लिया गया था। युधिष्ठिर ने भीम से कहा कि हमें दुर्योधन की मदद करनी चाहिए, जबकि भीम ने इसका विरोध किया। युधिष्ठिर ने अर्जुन से भी यही कहा, और अर्जुन ने बिना बहस किए दुर्योधन को छुड़ाने का प्रयास किया। युधिष्ठिर ने कहा कि हमारे बीच चाहे जो भी झगड़ा हो, लेकिन दुनिया हमें भाई ही समझती है।
ऑपरेशन सिंदूर का महत्व
'ऑपरेशन सिंदूर' केवल एक सैन्य कार्रवाई नहीं है, बल्कि यह आजाद भारत की नई दिशा और युद्ध-सिद्धांत का प्रतीक है। यह स्पष्ट करता है कि भारत और पाकिस्तान के रिश्ते अब किस दिशा में जाएंगे। अगर पाकिस्तान से कोई आतंकी हमला होता है, तो भारत अब कैंडल मार्च या निंदा नहीं करेगा, बल्कि सीधा जवाब देगा।
कांग्रेस का संकट
कांग्रेस का संकट यह है कि स्वतंत्रता से पहले यह पार्टी हर तरह की सोच को समाहित करती थी। लेकिन पं. नेहरू के नियंत्रण में आने के बाद पार्टी का मूल स्वभाव कमजोर पड़ गया। इंदिरा गांधी के समय में भी वामपंथियों का प्रभाव बढ़ा। यदि कांग्रेस को फिर से प्रासंगिक होना है, तो उसे व्यक्तिगत खीज और वंशवादी राजनीति से ऊपर उठकर देशहित में सोचना होगा।