कांग्रेस में असहमति का संकेत: मनीष तिवारी और शशि थरूर की चुप्पी पर सवाल

लोकसभा में ऑपरेशन सिंदूर पर बहस
लोकसभा में ऑपरेशन सिंदूर पर चल रही बहस के बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मनीष तिवारी और शशि थरूर का बोलना न होना कई सवालों को जन्म दे रहा है। तिवारी ने मंगलवार को एक देशभक्ति गीत और एक मीडिया रिपोर्ट साझा कर यह इशारा किया कि उन्हें पार्टी द्वारा बहस से बाहर रखा गया है। उनकी पोस्ट में छिपा संदेश स्पष्ट है कि क्या पार्टी उन सांसदों को बोलने का अवसर नहीं देना चाहती जो सरकार की विदेश नीति का समर्थन कर चुके हैं।
देशभक्ति गीत के माध्यम से संदेश
चंडीगढ़ से सांसद मनीष तिवारी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर 1970 की फिल्म 'पूरब और पश्चिम' का एक प्रसिद्ध देशभक्ति गीत साझा किया। गीत के बोल थे, "जहां डाल-डाल पर सोने की चिड़ियां करती हैं बसेरा, वो भारत देश है मेरा..." इसके साथ उन्होंने एक खबर साझा की, जिसमें बताया गया था कि ऑपरेशन सिंदूर पर बहस के दौरान कांग्रेस ने थरूर और तिवारी को क्यों बाहर रखा।
क्या सरकार की तारीफ ने किया भारी?
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, तिवारी और थरूर उन कांग्रेस सांसदों में शामिल थे जिन्हें मोदी सरकार ने विदेशी दौरों के लिए चुना था। इन यात्राओं के दौरान, उन्होंने भारत सरकार की नीतियों की प्रशंसा की, जो पार्टी नेतृत्व के लिए असहज हो सकती है। कुछ कांग्रेस नेताओं का मानना है कि जब सरकार ने नाम नहीं मांगे, तब ऐसे सांसदों का शामिल होना पार्टी की नीति के खिलाफ था। इसलिए, उन्हें लोकसभा में ऑपरेशन सिंदूर जैसे संवेदनशील मुद्दे पर बोलने से रोका गया।
थरूर का एक शब्दीय उत्तर - "मौनव्रत"
जब पत्रकारों ने शशि थरूर से पूछा कि उन्हें बोलने का अवसर क्यों नहीं मिला, तो उन्होंने मुस्कुराते हुए केवल एक शब्द कहा, "मौनव्रत।" उनका यह संक्षिप्त उत्तर भी बहुत कुछ कह गया।
पीएम मोदी और राहुल गांधी की बहस में भागीदारी
लोकसभा में ऑपरेशन सिंदूर पर बहस मंगलवार को भी जारी रही। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, नेता विपक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे प्रमुख नेताओं के बोलने की उम्मीद थी।
क्या मनीष तिवारी का संकेत है राजनीतिक असहमति?
मनीष तिवारी की सोशल मीडिया पोस्ट पार्टी में असहमति का संकेत मानी जा रही है। जहां वह देश के प्रति अपनी निष्ठा और प्रतिबद्धता दिखा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के निर्णयों पर भी सवाल उठा रहे हैं। यह भी संभव है कि तिवारी और थरूर जैसे नेताओं को पार्टी की नीति से अलग रुख अपनाने की कीमत चुकानी पड़ रही हो।