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कांग्रेस में प्रियंका गांधी की भूमिका पर बढ़ती चर्चा

कांग्रेस पार्टी में प्रियंका गांधी वाड्रा की भूमिका को लेकर हाल में चर्चा तेज हो गई है। भाजपा के नेता भी उन्हें एक सक्षम नेता मानते हुए आगे आने की सलाह दे रहे हैं। इस बीच, राहुल गांधी की नेतृत्व शैली और उनकी निरंतरता की समस्या पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। क्या प्रियंका को कांग्रेस की कमान संभालनी चाहिए? जानें इस मुद्दे पर और क्या चल रहा है कांग्रेस में।
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कांग्रेस में प्रियंका गांधी की भूमिका पर बढ़ती चर्चा

प्रियंका गांधी को नेतृत्व की जिम्मेदारी देने की मांग

हाल ही में यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि प्रियंका गांधी वाड्रा को कांग्रेस पार्टी की कमान संभालनी चाहिए। कांग्रेस के भीतर से यह आवाजें उठ रही हैं, लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी के नेता भी प्रियंका को एक सक्षम नेता मानते हुए उन्हें आगे आने की सलाह दे रहे हैं। सवाल यह है कि जब भाजपा राहुल गांधी को एक महत्वपूर्ण नेता मानती है और उन्हें अपने स्टार प्रचारक के रूप में देखती है, तो फिर प्रियंका की आवश्यकता क्यों महसूस हो रही है? यह भाजपा के लिए फायदेमंद है कि कांग्रेस का नेतृत्व कमजोर हाथों में है। कोई भी अपने लिए मजबूत प्रतिद्वंद्वी क्यों खोजेगा? इस पर संदेह होना स्वाभाविक है। कांग्रेस के भीतर निश्चित रूप से बेचैनी है, लेकिन कोई भी परिवार के भीतर विवाद नहीं चाहता। फिर भी, ओडिशा के पूर्व विधायक मोहम्मद मुकिम और सहारनपुर के सांसद इमरान मसूद जैसे नेताओं के बयानों के माध्यम से यह मुद्दा उठाया जा रहा है।


कांग्रेस में दो शक्तिशाली केंद्र

कांग्रेस में दो प्रमुख शक्ति केंद्र हैं। राहुल और प्रियंका दोनों के करीबी सहयोगियों की टीम है, लेकिन यह टीम कांग्रेस को कमजोर करने के लिए नहीं है। प्रियंका के करीबी नेता राहुल के विरोधी नहीं हैं। भूपेश बघेल, डीके शिवकुमार और रेवंत रेड्डी जैसे नेता प्रियंका के करीब माने जाते हैं, लेकिन क्या ये सब राहुल के खिलाफ हैं? राहुल गांधी के नेतृत्व को सभी नेता मानते हैं, लेकिन वे यह भी मानते हैं कि प्रियंका भाजपा या मोदी-शाह का मुकाबला नहीं कर सकतीं। हालांकि, राहुल गांधी बहुत आदर्शवादी हैं और व्यावहारिक राजनीति की आवश्यकताओं को समझने में प्रियंका अधिक सक्षम हैं। इसलिए कांग्रेस के नेता प्रियंका के साथ काम करना अधिक सुविधाजनक मानते हैं।


राहुल गांधी की निरंतरता की समस्या

राहुल गांधी के साथ एक और समस्या निरंतरता की है। वे किसी भी मुद्दे पर लगातार सक्रिय नहीं रहते हैं। हाल ही में संसद के शीतकालीन सत्र में उनके काम से कई कांग्रेस नेता निराश हुए हैं। उन्होंने प्रदूषण का मुद्दा उठाया, लेकिन फिर जर्मनी की यात्रा पर चले गए। यदि वे सदन में रहते और प्रदूषण पर चर्चा के लिए सरकार को मजबूर करते, तो कांग्रेस को लाभ हो सकता था। दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार है, और कांग्रेस दशकों से सत्ता से बाहर है। इसी तरह, महात्मा गांधी नरेगा को समाप्त करने के मुद्दे पर भी राहुल सदन में उपस्थित नहीं थे। यह लड़ाई ट्विटर पर नहीं लड़ी जा सकती। वंदे मातरम पर चर्चा के दौरान भी राहुल सदन में नहीं थे, जबकि उस दिन वे दिल्ली में थे। सोनिया गांधी ने पार्टी नेताओं को वंदे मातरम के मामले में डिफेंसिव नहीं होने की सलाह दी थी। प्रियंका ने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे हमलों पर बयान दिया, लेकिन राहुल चुप रहे। इन मुद्दों से कांग्रेस नेताओं में असंतोष बढ़ता है और इसी कारण प्रियंका का नाम सामने आता है।