केजरीवाल और ममता का चुनावी खेल: कांग्रेस के लिए चुनौती

चुनावों में केजरीवाल और ममता का प्रभाव
अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी आगामी चुनावों में कांग्रेस और विपक्षी गठबंधन की रणनीतियों को प्रभावित करते नजर आ रहे हैं। आम आदमी पार्टी ने यह घोषणा की है कि वह बिहार की सभी विधानसभा सीटों पर स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ेगी। यह ध्यान देने योग्य है कि बिहार में 20 से 22 प्रतिशत वोट हमेशा अन्य दलों को मिलते हैं। इस बार 'इंडिया' ब्लॉक और एनडीए के बीच सीधा मुकाबला है, जिसमें प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी ने एक नया मोड़ लाया है। यदि केजरीवाल की पार्टी अकेले चुनाव लड़ेगी, तो वह कुछ वोट काटकर विपक्षी गठबंधन को नुकसान पहुंचा सकती है। यदि सत्ता विरोधी वोट का कोई हिस्सा आप को मिलता है, तो यह भी विपक्ष के लिए हानिकारक होगा। हाल ही में, आप के राज्यसभा सांसद संजय ने बिहार का दौरा किया और वहां लोकप्रिय शिक्षक खान सर से मुलाकात की।
ममता बनर्जी की रणनीतियाँ
वहीं, ममता बनर्जी केरल में कांग्रेस को हराने की योजना बना रही हैं, लेकिन पश्चिम बंगाल और असम में उनके साथ कांग्रेस का तालमेल कैसे होगा? ममता ने असम के प्रमुख नेता संतोष मोहन देब की बेटी सुष्मिता देब को राज्यसभा भेजा है और असम की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी है। यदि पश्चिम बंगाल और असम में कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बीच तालमेल नहीं होता है, तो पश्चिम बंगाल में कांग्रेस का खाता खुलने की संभावना कम है और असम में भी 10 साल बाद सत्ता में वापसी की उम्मीदें धूमिल होंगी। राज्यों के चुनावों में कांग्रेस की हार तृणमूल और आप दोनों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है, जबकि अन्य क्षेत्रीय पार्टियों जैसे राजद, डीएमके, सपा या जेएमएम को कांग्रेस की आवश्यकता होती है।