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केरल उपचुनाव में कांग्रेस को डब्लुपीआई का समर्थन, विवाद बढ़ा

केरल में कांग्रेस पार्टी को वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया (डब्लुपीआई) का समर्थन मिलने से राजनीतिक विवाद उत्पन्न हो गया है। सीपीएम ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस सांप्रदायिक संगठनों की मदद ले रही है। इस घटनाक्रम के पीछे की सच्चाई और इसके संभावित प्रभावों पर चर्चा की गई है। क्या यह कांग्रेस के लिए आगामी विधानसभा चुनावों में चुनौती बन सकता है? जानें पूरी कहानी।
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केरल उपचुनाव में कांग्रेस को डब्लुपीआई का समर्थन, विवाद बढ़ा

कांग्रेस पार्टी के लिए नई चुनौतियाँ

केरल में कांग्रेस पार्टी एक नई मुश्किल में फंस गई है। वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया (डब्लुपीआई) ने नीलांबुर सीट पर हो रहे उपचुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ उम्मीदवार का समर्थन करने की घोषणा की है, जिससे विवाद उत्पन्न हो गया है। सीपीएम के नेतृत्व वाले एलडीएफ ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस चुनाव जीतने के लिए सांप्रदायिक संगठनों की सहायता ले रही है।


सीपीएम के राज्य सचिव एमवी गोविंदन ने कहा कि डब्लुपीआई वास्तव में जमात ए इस्लामी का राजनीतिक विंग है, और कांग्रेस ने इस समर्थन के जरिए यह स्पष्ट कर दिया है कि वह चुनाव जीतने के लिए किसी भी प्रकार के गठजोड़ से हिचकिचा नहीं रही है।


गोविंदन ने कांग्रेस को जमात ए इस्लामी कांग्रेस करार दिया और यह भी कहा कि कांग्रेस ने नीलांबूर सीट पर भाजपा का भी समर्थन लिया है। दूसरी ओर, कांग्रेस विधायक दल के नेता वीडी सतीशन ने कहा कि 2009 के लोकसभा चुनाव और 2011 के विधानसभा चुनाव में सीपीएम ने भी जमात ए इस्लामी की मदद ली थी।


अब सवाल यह उठता है कि यदि सीपीएम ने डेढ़ दशक पहले इस संगठन का समर्थन लिया था और बाद में उससे दूरी बना ली, तो क्या कांग्रेस जमात ए इस्लामी का समर्थन लेने को सही ठहरा सकती है? डब्लुपीआई के समर्थन से कांग्रेस को उपचुनाव में कितना लाभ होगा, यह तो भविष्य में ही पता चलेगा, लेकिन यदि यह धारणा बनी कि कांग्रेस मुस्लिम वोट के लिए कट्टरपंथियों का सहारा ले रही है, तो इसका असर अगले साल के विधानसभा चुनावों और देश के अन्य हिस्सों में उसकी संभावनाओं पर पड़ सकता है।