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कैब उद्योग में विश्वास संकट: ब्लूस्मार्ट और ओला के विवाद

ब्लूस्मार्ट और ओला के विवादों ने भारत के कैब उद्योग में ग्राहकों का विश्वास कमजोर कर दिया है। ये कंपनियां, जो पहले नवाचार का प्रतीक थीं, अब वित्तीय कुप्रबंधन और अनैतिक प्रथाओं के लिए बदनाम हो रही हैं। ब्लूस्मार्ट की मूल कंपनी जेनसोल इंजीनियरिंग पर गंभीर आरोप लगे हैं, जबकि ओला पर कर चोरी के आरोप हैं। इन घटनाओं ने उपभोक्ता संरक्षण कानूनों को सशक्त करने की आवश्यकता को उजागर किया है। जानें इस संकट का पूरा विवरण और इसके संभावित प्रभाव।
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कैब उद्योग में विश्वास संकट: ब्लूस्मार्ट और ओला के विवाद

कैब उद्योग में गिरता विश्वास

ब्लूस्मार्ट और ओला से जुड़े हालिया विवादों ने ग्राहकों के बीच विश्वास को कमजोर कर दिया है। ये कंपनियां, जो पहले सुविधा और नवाचार का प्रतीक मानी जाती थीं, अब वित्तीय कुप्रबंधन और अनैतिक प्रथाओं के लिए बदनाम हो रही हैं। ग्राहकों का मानना है कि उनके पैसे का उपयोग न केवल सेवाओं के लिए, बल्कि प्रमोटरों के व्यक्तिगत लाभ के लिए भी किया जा रहा है।


ब्लूस्मार्ट का विवाद

भारत का कैब उद्योग, जो कुछ समय पहले तक तकनीकी नवाचार का प्रतीक था, अब ब्लूस्मार्ट और ओला जैसी कंपनियों पर लगे आरोपों से सवालों के घेरे में है। धोखाधड़ी और कर चोरी के आरोपों ने न केवल उनके कारोबारी मॉडल पर सवाल उठाए हैं, बल्कि ग्राहकों के बीच अविश्वास और निराशा की भावना भी पैदा की है। ब्लूस्मार्ट, जो 2019 में एक इलेक्ट्रिक वाहन-आधारित सेवा के रूप में शुरू हुई थी, ने अपनी पर्यावरण-अनुकूल नीतियों के कारण तेजी से लोकप्रियता हासिल की।


जेनसोल इंजीनियरिंग की वित्तीय प्रथाएं

हालांकि, अप्रैल 2025 में ब्लूस्मार्ट की मूल कंपनी जेनसोल इंजीनियरिंग की वित्तीय प्रथाओं पर गंभीर सवाल उठे। सेबी ने पाया कि कंपनी के प्रमोटरों ने 977.75 करोड़ रुपये के ऋण का दुरुपयोग किया। यह राशि इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद के लिए थी, लेकिन इसे व्यक्तिगत खर्चों पर खर्च किया गया।


ओला कैब्स के विवाद

ओला कैब्स, जो भारत के टैक्सी बाजार में अग्रणी रही है, भी हाल के वर्षों में कई विवादों में उलझी हुई है। हाल में, कंपनी पर कर चोरी और वित्तीय अनियमितताओं के गंभीर आरोप लगे हैं। आयकर विभाग की जांच में पता चला कि ओला ने अपने ड्राइवरों के भुगतान पर टैक्स की गणना में अनियमितताएं बरतीं।


उपभोक्ता संरक्षण की आवश्यकता

इन घोटालों ने भारत में ऐसे उद्योगों के लिए सख्त नियामक ढांचे की आवश्यकता को उजागर किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित करने और ग्राहकों के हितों की रक्षा के लिए कड़े नियम लागू करने चाहिए। उपभोक्ता संरक्षण कानूनों को सशक्त करने की आवश्यकता है, ताकि ग्राहकों को रिफंड और मुआवजे के लिए लंबी कानूनी प्रक्रियाओं का सामना न करना पड़े।