क्या गाय को संसद में लाना चाहिए था? शंकराचार्य की अनोखी मांग

शंकराचार्य का अनोखा सुझाव
हाल ही में, शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने एक महत्वपूर्ण मांग उठाई है। उन्होंने कहा कि नए संसद भवन के उद्घाटन के समय एक जीवित गाय को भी वहां लाया जाना चाहिए था। यह बयान उन्होंने रविवार को मीडिया से बातचीत करते हुए दिया।
सेंगोल और गाय का महत्व
शंकराचार्य ने यह सवाल उठाया कि जब संसद भवन में सेंगोल ले जाया गया, जिस पर गाय की आकृति बनी है, तो असली गाय को वहां क्यों नहीं लाया गया? उनका मानना है कि गाय भारतीय संस्कृति में शुभ मानी जाती है और इसका आशीर्वाद संसद भवन और प्रधानमंत्री दोनों को मिलना चाहिए।
गाय का आशीर्वाद लाने की योजना
उन्होंने चेतावनी दी कि यदि समय रहते कोई कदम नहीं उठाया गया, तो वे देशभर से गायों को लाकर संसद भवन में ले जाएंगे, ताकि यह भवन गौमाता का आशीर्वाद प्राप्त कर सके।
गौ सम्मान के लिए प्रोटोकॉल की आवश्यकता
शंकराचार्य ने महाराष्ट्र सरकार से आग्रह किया कि गौ सम्मान के लिए एक स्पष्ट प्रोटोकॉल तैयार किया जाए। उन्होंने कहा कि गाय के सम्मान के लिए नियमों का होना आवश्यक है, ताकि सभी लोग उनका पालन कर सकें।
हर विधानसभा क्षेत्र में 'रामधाम' की स्थापना
उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि हर विधानसभा क्षेत्र में एक 'रामधाम' होना चाहिए, जिसमें कम से कम 100 गायों की देखभाल की जा सके। इससे न केवल गौसंरक्षण होगा, बल्कि सांस्कृतिक मूल्यों का भी संरक्षण होगा।
गाय को राष्ट्रमाता घोषित करने की मांग
धर्म संसद में, शंकराचार्य ने होशंगाबाद के सांसद दर्शन सिंह चौधरी की प्रशंसा की, जिन्होंने गाय को 'राष्ट्रमाता' घोषित करने की मांग की थी। शंकराचार्य ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया।
भाषा विवाद पर विचार
मराठी और हिंदी के विवाद पर शंकराचार्य ने कहा कि हिंदी को प्रशासनिक भाषा के रूप में पहले मान्यता मिली थी, जबकि मराठी को राज्य निर्माण के बाद। उन्होंने बताया कि दोनों भाषाएं कई बोलियों से बनी हैं, इसलिए किसी एक को लेकर विवाद करना उचित नहीं है।
मालेगांव विस्फोट मामले में निष्पक्ष न्याय की मांग
शंकराचार्य ने मालेगांव विस्फोट मामले पर भी अपनी राय रखी और कहा कि असली दोषियों को सजा मिलनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी प्रकार की हिंसा को आपराधिक कृत्य माना जाना चाहिए और समाज में शांति बनाए रखनी चाहिए।
संस्कृति और परंपरा पर बहस
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद का यह बयान संसद भवन के उद्घाटन में भारतीय परंपराओं और संस्कृति की भूमिका पर नई बहस को जन्म देता है। उनकी मांगें धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक संरक्षण और गौसंरक्षण से जुड़ी हुई हैं, जो एक विशेष वर्ग के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।