क्या चीन ईरान में अमेरिकी हमलों के बाद सैन्य हस्तक्षेप करेगा?

मध्य-पूर्व में तनाव और अमेरिका के हमले
मध्य-पूर्व में अमेरिकी हमलों और 'ऑपरेशन मिडनाइट हैमर' के चलते तनाव में काफी वृद्धि हुई है। अमेरिका ने ईरान के प्रमुख परमाणु स्थलों जैसे फोर्डो, नतांज और इस्फहान पर सटीक हमले किए हैं, जिससे न केवल ईरान, बल्कि पूरे क्षेत्र में तनाव और टकराव का माहौल बन गया है। इस स्थिति में, यह सवाल उठता है कि क्या चीन, जो ईरान का सबसे बड़ा व्यापार साझेदार और उसके तेल का प्रमुख खरीदार है, इस कठिन समय में सैन्य कार्रवाई में शामिल हो सकता है?
चीन और ईरान का रणनीतिक संबंध
चीन और ईरान के बीच 2021 में एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी समझौता हुआ था, जिसमें ऊर्जा, व्यापार, बुनियादी ढांचा और सैन्य सहयोग शामिल हैं। इस समझौते के तहत, ईरान प्रतिदिन लगभग 20 लाख बैरल तेल चीन को सप्लाई करता है, जो चीन के कुल तेल आयात का लगभग 15 प्रतिशत है। इस संबंध के माध्यम से, चीन ने ईरान को C-802 एंटी-शिप मिसाइलें, ड्रोन के हिस्से और रॉकेट ईंधन जैसी तकनीकी सहायता भी प्रदान की है, जिससे ईरान की रक्षा क्षमताएं और मजबूत हुई हैं।
क्या चीन के पास सैन्य संसाधन हैं?
चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) दुनिया की सबसे बड़ी सेनाओं में से एक है, लेकिन क्या वह 5,000 किलोमीटर दूर ईरान में सैन्य हस्तक्षेप कर सकती है? चीन के पास 9.7 लाख सक्रिय जवान, 7,000 टैंक, 35,000 बख्तरबंद वाहन, 12,000 तोपें और 425 युद्धपोत हैं, जिनमें 3 विमानवाहक पोत और 72 पनडुब्बियां शामिल हैं। इसके अलावा, चीन के पास 3,200 विमान हैं, जिनमें 600 स्टील्थ J-20 फाइटर और 400 J-16 शामिल हैं।
चीन के लिए सैन्य हस्तक्षेप की चुनौतियाँ
चीन के लिए 5,000 किमी दूर सैन्य ऑपरेशन करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। PLA के पास केवल 50 एयर-टैंकर हैं, जो इस दूरी पर बड़े पैमाने पर ऑपरेट करने के लिए अपर्याप्त हैं। इसके अलावा, चीन का केवल एक विदेशी सैन्य बेस (जिबूती) है, जो अमेरिकी, फ्रांसीसी और जापानी बेस से घिरा हुआ है। ऐसे में, चीन की सैन्य क्षमता अपनी सीमाओं को पार करने में असमर्थ हो सकती है।
चीन के लिए सैन्य हस्तक्षेप क्यों मुश्किल है?
1. लॉजिस्टिक समस्याएं: चीन के लिए इतने दूर सैन्य अभियान चलाना एक बड़ा लॉजिस्टिक चुनौती हो सकता है। लंबी दूरी, आपूर्ति और सैन्य सामग्रियों का परिवहन और युद्धक विमानों की उपयुक्तता जैसी समस्याएं, चीन के लिए रणनीतिक संचालन को कठिन बना सकती हैं.
2. चीन की गैर-हस्तक्षेप नीति: चीन की विदेश नीति मुख्य रूप से सैन्य हस्तक्षेप से बचने की रही है। वह कभी भी सीधे तौर पर किसी संघर्ष में शामिल होने की बजाय कूटनीतिक और आर्थिक रणनीतियों को प्राथमिकता देता है। मध्य-पूर्व में हस्तक्षेप चीन के लिए ज्यादा खतरनाक हो सकता है, खासकर अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ सीधे टकराव से बचने के लिए.
3. अमेरिका से टकराव: चीन के लिए ईरान में सैन्य हस्तक्षेप, अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ सीधे टकराव को बढ़ावा दे सकता है। ऐसी स्थिति में चीन के लिए सैन्य कार्रवाई के बजाय, कूटनीतिक प्रयासों में सहयोग करना ज्यादा फायदेमंद हो सकता है.
चीन का कूटनीतिक और आर्थिक सहयोग
विशेषज्ञों के अनुसार, चीन सैन्य हस्तक्षेप के बजाय कूटनीतिक और आर्थिक समर्थन को प्राथमिकता देगा। चीन संयुक्त राष्ट्र में ईरान के खिलाफ दबाव डालने, तेल खरीदी बढ़ाने और इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में सहयोग करने जैसी रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करेगा। इसके अलावा, चीन ईरान को हथियार, तेल, और राजनीतिक समर्थन मुहैया कराकर मध्य-पूर्व में अपनी स्थिति मजबूत करेगा, लेकिन प्रत्यक्ष सैन्य संघर्ष में भाग नहीं लेगा.