क्या प्रियंका गांधी वाड्रा बनेंगी कांग्रेस की नई ताकत? शीतकालीन सत्र में दिखा बदलाव
संसद के शीतकालीन सत्र के संकेत
हाल ही में समाप्त हुए संसद के शीतकालीन सत्र ने भारतीय राजनीति में कुछ महत्वपूर्ण संकेत दिए हैं। इस सत्र के दौरान दो प्रमुख बदलाव स्पष्ट रूप से उभरकर सामने आए। पहला बदलाव भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीतिक स्थिति से संबंधित है। 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की सीटों में कमी के बाद यह माना जा रहा था कि प्रधानमंत्री की पकड़ कमजोर हो गई है, लेकिन शीतकालीन सत्र में सरकार के रवैये और कार्यप्रणाली ने इस धारणा को काफी हद तक गलत साबित किया। मोदी सरकार ने संसद में वही आत्मविश्वास और नियंत्रण प्रदर्शित किया, जैसा कि वह पिछले दो कार्यकालों में दिखाती रही है.
प्रियंका गांधी वाड्रा की बढ़ती भूमिका
दूसरा और अधिक दिलचस्प बदलाव कांग्रेस पार्टी के भीतर देखा गया। सत्र के प्रारंभिक दिनों के बाद यह स्पष्ट हो गया कि प्रियंका गांधी वाड्रा की भूमिका कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों की अगुवाई में बढ़ती जा रही है, जबकि राहुल गांधी अपेक्षाकृत हाशिये पर दिखाई दिए। संसद के समापन दिवस पर यह बदलाव और भी प्रतीकात्मक रूप से सामने आया, जब प्रियंका गांधी ने संसदीय परंपराओं से जुड़ी एक बैठक में प्रधानमंत्री मोदी और उनके मंत्रियों के साथ सहजता से भाग लिया। इस दौरान उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र वायनाड से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की और माहौल काफी सहज नजर आया। कांग्रेस नेतृत्व और पीएम मोदी के बीच इस तरह की खुली बातचीत पहले शायद ही देखने को मिली हो.
इससे एक दिन पहले प्रियंका गांधी ने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी से उनके संसद भवन स्थित कार्यालय में मुलाकात की थी। यह मुलाकात प्रश्नकाल के दौरान हुई बातचीत के बाद तय हुई, जिसे गडकरी ने तुरंत स्वीकार कर लिया। प्रियंका की यह सक्रियता और संवाद का तरीका कांग्रेस की पारंपरिक राजनीति से अलग नजर आया, खासकर तब जब राहुल गांधी देश से बाहर थे। इन दो दिनों में प्रियंका ने एक परिपक्व और निर्णायक नेता की छवि पेश की, जिसने राजनीतिक गलियारों में कई चर्चाओं को जन्म दिया।
विपक्षी गठबंधन में असंतोष
इसी बीच, राहुल गांधी की अनुपस्थिति और उनकी रणनीतियों को लेकर विपक्षी गठबंधन 'इंडिया ब्लॉक' के भीतर असंतोष भी खुलकर सामने आने लगा। वोटिंग प्रक्रिया, ईवीएम और कथित गड़बड़ियों जैसे मुद्दों पर राहुल के रुख को लेकर सहयोगी दलों ने दूरी बनानी शुरू कर दी। बिहार चुनाव के नतीजों ने इस असहजता को और बढ़ा दिया, जहां महागठबंधन को करारी हार का सामना करना पड़ा।
शीतकालीन सत्र के दौरान कांग्रेस नेतृत्व को लेकर सवाल तब और गहरे हो गए, जब ओडिशा के एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पार्टी में नए और युवा नेतृत्व को आगे लाने की मांग की। इस पत्र में प्रियंका गांधी का नाम भी सुझाया गया। भले ही पार्टी ने उस नेता के खिलाफ कार्रवाई की हो, लेकिन इसके बाद प्रियंका की बढ़ी हुई सक्रियता ने यह संकेत जरूर दिया है कि कांग्रेस में नेतृत्व को लेकर भीतर ही भीतर मंथन तेज हो चुका है.
