क्या स्वतंत्रता दिवस पर विपक्ष की अनुपस्थिति ने संवैधानिक गरिमा को चुनौती दी?

स्वतंत्रता दिवस 2025: एक ऐतिहासिक पल
स्वतंत्रता दिवस 2025: देश के 79वें स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐतिहासिक लाल किले से ध्वजारोहण किया। इस बार एक अनोखी स्थिति देखने को मिली, जहां आज़ादी के बाद पहली बार लोकसभा और राज्यसभा के विपक्षी नेता समारोह में उपस्थित नहीं थे। इस घटना ने राजनीतिक बहस को जन्म दिया है।
संविधानिक गरिमा बनाम राजनीतिक सीटें
संविधानिक गरिमा बनाम सीटों की सियासत
कांग्रेस प्रवक्ता डॉ. अजय उपाध्याय ने एक टीवी चैनल पर कहा कि स्वतंत्रता दिवस पर विपक्ष के नेताओं को अगली पंक्ति में बैठाना एक पुरानी परंपरा रही है, जो जवाहरलाल नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक चली आई है। पिछले वर्ष राहुल गांधी को अंतिम पंक्ति में बैठाया गया, जो संवैधानिक गरिमा के खिलाफ है।
संविधानिक मर्यादा का महत्व
व्यक्ति विशेष का नहीं, बल्कि संवैधानिक मर्यादा
उपाध्याय ने यह भी स्पष्ट किया कि यह मामला किसी व्यक्ति विशेष का नहीं, बल्कि संवैधानिक मर्यादा का है। राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे नेताओं के साथ ऐसा व्यवहार उचित नहीं है।
क्या सरकार कर रही है राजनीतिकरण?
क्या सरकार कर रही है राजनीतिकरण?
कांग्रेस का आरोप है कि प्रधानमंत्री इस मुद्दे का राजनीतिकरण कर रहे हैं। अजय उपाध्याय ने कहा कि दोनों नेताओं ने स्वतंत्रता दिवस अपने स्तर पर मनाया और यह सुनिश्चित किया कि वे मर्यादा का उल्लंघन न करें। उनका तर्क है कि अगर सरकार की मंशा राजनीतिक लाभ उठाने की नहीं होती, तो ऐसी स्थिति नहीं बनती।
BJP ने कांग्रेस के आरोपों को खारिज किया
BJP ने कांग्रेस के आरोपों को किया खारिज
इस मामले पर भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता आरपी सिंह ने कांग्रेस के आरोपों को खारिज करते हुए सवाल किया कि क्या विपक्षी नेताओं ने यह देखा कि इस बार उनके लिए सीट कहां लगाई गई थी? बीजेपी के दूसरे प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने कहा कि विपक्ष के नेता का संवैधानिक पद है, और ऐसे राष्ट्रीय आयोजन में उनकी मौजूदगी उनका कर्तव्य है।
परंपरा टूटी या संवाद की कमी?
परंपरा टूटी या संवाद की कमी?
विशेषज्ञों का मानना है कि इस घटनाक्रम ने राजनीतिक शिष्टाचार और संवैधानिक परंपराओं पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या यह सिर्फ एक सीट का विवाद है, या फिर लोकतंत्र में संवादहीनता की निशानी? यह आने वाला वक्त बताएगा। स्वतंत्रता दिवस जैसे अवसर पर विपक्ष के नेताओं की अनुपस्थिति केवल एक राजनीतिक विवाद नहीं, बल्कि संवैधानिक मूल्यों की एक बड़ी बहस बनती जा रही है, जिसमें परंपराएं, प्रतिष्ठा और राजनीति तीनों की भूमिका सवालों के घेरे में है।