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गांधी और भारतीय न्यायपालिका: एक विवादास्पद दृष्टिकोण

इस लेख में गांधी के दोहरे दृष्टिकोण और भारतीय न्यायपालिका की भूमिका पर चर्चा की गई है। क्या गांधी ने मुस्लिमों का बचाव किया और हिंदुओं की अनदेखी की? सुप्रीम कोर्ट के फैसलों और राजनीतिक चुप्पी पर एक गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। जानें कि कैसे ये मुद्दे आज भी प्रासंगिक हैं और भारतीय राजनीति में उनकी छाप क्या है।
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गांधी और भारतीय न्यायपालिका: एक विवादास्पद दृष्टिकोण

गांधी का दोहरा दृष्टिकोण

महात्मा गांधी को स्वतंत्र भारत का 'राष्ट्रपिता' माना जाता है, लेकिन क्या वे न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के भी पिता हैं? भारतीय शासक वर्ग का यह एक विशेष रवैया रहा है कि वे हिंदुओं को बिना वजह फटकारते हैं, जबकि मुस्लिमों का हर हाल में बचाव करते हैं। बाल ठाकरे जैसे कुछ अपवादों को छोड़कर, अधिकांश नेता जिहाद और उसके प्रेरक विचारों पर चुप रहते हैं।


सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात में मुस्लिम पीड़ितों के प्रति जो संवेदनशीलता दिखाई, वह कश्मीरी पंडितों के मामले में नहीं देखी गई।


सुप्रीम कोर्ट का दोहरा मापदंड

श्रीलाल शुक्ल के उपन्यास 'राग दरबारी' में एक पुलिस थाने का उल्लेख है, जहां सिपाहियों को बिना किसी खतरे के वीरता दिखाने का आदेश दिया गया। यह भावना स्वतंत्र भारत के शासक वर्ग की रही है।


हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश ने विष्णु देवता के लिए अपमानजनक टिप्पणी की, जबकि याचिका किसी मंदिर की प्रतिमा की पुनर्स्थापना के लिए थी।


गांधी का मुस्लिमों के प्रति रुख

गांधी ने कभी भी मुस्लिमों की हिंसा की सीधी निंदा नहीं की। उदाहरण के लिए, उन्होंने मोपला मुस्लिमों का बचाव किया, जिन्होंने 1921 में हिंदुओं की सामूहिक हत्या की।


डॉ. अंबेडकर ने लिखा है कि गांधी ने कांग्रेस कार्यसमिति को भी मोपलाओं की निंदा करने से रोका।


राजनीतिक चुप्पी

भारतीय संसद ने कश्मीर में हिंदुओं के संहार पर चर्चा नहीं की, और कार्यपालिका ने दशकों तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं की।


इस प्रकार, कश्मीरी पंडित अपने ही देश में शरणार्थी बन गए, जबकि ब्रिटिश राज में हिंदू सुरक्षित थे।


निष्कर्ष

इसलिए, जो लोग सुप्रीम कोर्ट पर रंज करते हैं, उन्हें भारतीय राजनीति की पूरी समीक्षा करनी चाहिए। यह स्पष्ट है कि राष्ट्रवादी आंदोलन के उभार के साथ जो प्रवृत्तियाँ बनीं, वे आज भी जारी हैं।