चंद्रशेखर: एक संवेदनशील नेता की याद में

चंद्रशेखर की मानवीयता और सियासत
राजनीति का स्वभाव अजीब होता है। अच्छे को बुरा और बुरे को अच्छा मानना। चंद्रशेखर के साथ भी ऐसा ही हुआ। उन्होंने सत्ता से पहले मानवीय संबंधों को प्राथमिकता दी। सियासत के कठिन दौर में भी अपनी संवेदनशीलता और करुणा को बनाए रखा। इस दृष्टि से चंद्रशेखर अद्वितीय थे। उनकी जेल डायरी, साथियों के संस्मरण और जीवन के अनेक किस्से यह दर्शाते हैं कि वे सियासत को सेवा मानते थे, न कि सत्ता का खेल। उनका छह दशकों का सार्वजनिक जीवन इस बात का प्रमाण है कि सियासत में संवेदना और सरोकार महत्वपूर्ण हैं।
चंद्रशेखर का जन्म ग्रामीण परिवेश में हुआ था। उन्होंने हमेशा देशज चेतना को अपने साथ रखा। खेतों और संघर्षों ने उन्हें जीवन की पहली शिक्षा दी। शायद इसी मिट्टी के जुड़ाव ने उन्हें वह संवेदनशीलता दी, जो उनके व्यक्तित्व की पहचान बनी। वे कहते थे कि समाजवाद की शिक्षा किताबों से नहीं, बल्कि लोगों के बीच रहकर मिली।
सत्ता के शीर्ष पर भी वे नहीं बदले। जब कोई सहयोगी बीमार होता, तो वे अस्पताल जाते। जेपी बीमार थे, और चंद्रशेखर उनके साथ रहे। उनके लिए हर इंसान महत्वपूर्ण था। चंद्रशेखर के सहयोगी गौतम बीमार पड़े, तो उन्होंने उन्हें हैदराबाद ले जाकर इलाज कराया। रामधन, जो उनके विश्वविद्यालय के साथी थे, गंभीर रूप से बीमार पड़े। चंद्रशेखर अक्सर उन्हें देखने जाते और जाते समय उनके तकिए के नीचे पैसे रख देते। यह ध्यान देने योग्य है कि 1989 में रामधन ने सार्वजनिक रूप से चंद्रशेखर का विरोध किया था, लेकिन चंद्रशेखर ने कभी इसका बुरा नहीं माना।
एक बार एक गरीब कार्यकर्ता उनके घर आया और गुड़ लाया। चंद्रशेखर घर पर नहीं थे, लेकिन लौटने पर उन्होंने कार्यकर्ता को चाय पिलाने को कहा और फिर उसे अपनी गाड़ी में उसके गाँव ले गए। यह उनकी सादगी और आत्मीयता का उदाहरण था।
1984 में युवा समाजवादियों का सम्मेलन चित्रकूट में हुआ। चंद्रशेखर उद्घाटन करने आए थे, तभी पास में एक किसान के घर में आग लग गई। उन्होंने सम्मेलन छोड़कर आग बुझाने में मदद की। उनके लिए एक किसान का घर किसी सभा से अधिक महत्वपूर्ण था।
उनकी जेल डायरी में कई किस्से हैं। आपातकाल के दौरान, जब वे पटियाला जेल में थे, उन्होंने अन्य कैदियों की छोटी-छोटी जरूरतों का ध्यान रखा। एक युवा कैदी राजू, जो मामूली अपराध में बंद था, की जमानत राशि चंद्रशेखर ने दी। उन्होंने अपनी डायरी में लिखा कि राजू की रिहाई का दिन था और यह उसके लिए अप्रत्याशित था।
चंद्रशेखर कार्यकर्ताओं को परिवार मानते थे। 1985 में चुनाव प्रचार के दौरान, उन्होंने अपने उम्मीदवारों के साथ-साथ शरद पवार की पार्टी के उम्मीदवारों के लिए भी प्रचार किया। चुनाव हारने के बाद, वे रचनात्मक कार्यों में जुट गए और कई स्मारकों का निर्माण किया।
चंद्रशेखर ने कभी भी मीडिया के आरोपों का जवाब नहीं दिया। वे कहते थे, 'अगर मैं सही हूं, तो झूठ के बादल छटेंगे।' मृत्यु के समय, उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र भेजा कि उनके द्वारा बनाए गए ट्रस्टों की संपत्ति सार्वजनिक संपत्ति में बदल दी जाए। आज चंद्रशेखर की पुण्यतिथि है, और यह दिन हमें उनके जीवन से प्रेरणा लेने का अवसर देता है।
– हरिवंश, उप सभापति लोकसभा