चुनाव नतीजों की स्वीकार्यता: भारतीय लोकतंत्र की स्थिरता की कुंजी

चुनाव नतीजों की स्वीकार्यता
चुनाव परिणामों को सहजता से स्वीकार करना, चुनावी लोकतंत्र की स्थिरता के लिए आवश्यक है। यह प्रक्रिया सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण को सुनिश्चित करती है। इसके अभाव में कई देशों को राजनीतिक अस्थिरता का सामना करना पड़ा है।
चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, लेकिन यह प्रश्न अब निर्वाचन आयोग और विपक्षी दलों के बीच राजनीतिक संघर्ष का कारण बन गया है। दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है, जिसका एक स्पष्ट उदाहरण रविवार को देखने को मिला। बिहार के सासाराम में महागठबंधन ने आयोग के खिलाफ वोटर अधिकार यात्रा शुरू की, जबकि निर्वाचन आयोग ने नई दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर विपक्ष को कठघरे में खड़ा करने का प्रयास किया। विपक्षी नेताओं ने निर्वाचन आयोग पर भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलीभगत का आरोप लगाया, जबकि मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने राहुल गांधी को चुनौती दी कि यदि वे एक हफ्ते के भीतर आयोग के सामने हलफनामा नहीं देते, तो उनके आरोप गलत माने जाएंगे।
यह स्थिति अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। लोकतंत्र में राजनीतिक दलों के बीच संघर्ष स्वाभाविक है, लेकिन जब एक राजनीतिक पक्ष किसी संवैधानिक संस्था को निशाना बनाता है, तो यह व्यवस्था के लिए गंभीर संकट का संकेत है। अब स्थिति यह है कि विपक्ष और उसके समर्थकों के लिए हर चुनाव का परिणाम संदिग्ध होगा, जिसमें वे विजयी नहीं हुए। ऐसे में उनका दावा होगा कि 'चुनाव चुराए गए हैं'। दूसरी ओर, निर्वाचन आयोग इन आरोपों को खारिज करेगा और सत्ताधारी पार्टी उसके बचाव में खड़ी होगी।
इस प्रकार का रुझान धीरे-धीरे भारतीय लोकतंत्र की प्रतिष्ठा को कमजोर करेगा। चुनाव परिणामों को सहजता से स्वीकार करना, चुनावी लोकतंत्र की स्थिरता के लिए आवश्यक है। इसके बिना, सत्ता का शांतिपूर्ण हस्तांतरण संभव नहीं है। भारत में ऐसी स्थिति से बचना अत्यंत आवश्यक है। निर्वाचन आयोग इस दिशा में पहल कर सकता है। उसे किसी विवाद में एक पक्ष बनने की आवश्यकता नहीं है। यदि शिकायतें आई हैं, तो उसे विनम्रता और सदिच्छा के साथ विपक्ष से संवाद शुरू करना चाहिए।