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जगदीप धनखड़ का इस्तीफा: क्या है इसके पीछे की सच्चाई?

भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अचानक इस्तीफा देकर सभी को चौंका दिया। स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए उन्होंने यह कदम उठाया, लेकिन सूत्रों के अनुसार, इसके पीछे जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को स्वीकार करने की पहल है। इस फैसले ने केंद्र सरकार को सकते में डाल दिया है। जानिए इस इस्तीफे के पीछे की असली कहानी और राजनीतिक हलचल के बारे में।
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जगदीप धनखड़ का इस्तीफा: क्या है इसके पीछे की सच्चाई?

धनखड़ का अचानक इस्तीफा

भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मानसून सत्र के पहले दिन अपने पद से इस्तीफा देकर सभी को चौंका दिया। स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए उन्होंने यह कदम उठाया, लेकिन अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि इसके पीछे कुछ और कारण हैं। बताया जा रहा है कि राज्यसभा में जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को स्वीकार करने की उनकी पहल इस फैसले का मुख्य कारण बन गई।


सरकार की योजना पर असर

धनखड़ के इस निर्णय ने केंद्र सरकार को सकते में डाल दिया, क्योंकि उनकी योजना थी कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया पहले लोकसभा में शुरू की जाए। लेकिन जब धनखड़ ने खुद ही राज्यसभा में इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाया, तो राजनीतिक हलचल मच गई। विवादों और असहजता के माहौल में उन्होंने इस्तीफा देना उचित समझा।


स्वास्थ्य का बहाना या कुछ और?

धनखड़ ने राष्ट्रपति को भेजे अपने इस्तीफे में स्वास्थ्य कारणों का उल्लेख किया, जिसे राष्ट्रपति ने तुरंत स्वीकार कर लिया। लेकिन सूत्रों के अनुसार, असली वजह कुछ और है। सोमवार को राज्यसभा में जस्टिस वर्मा के खिलाफ विपक्ष के 63 सांसदों के हस्ताक्षर वाला महाभियोग प्रस्ताव धनखड़ को सौंपा गया था, जिसे उन्होंने स्वीकार कर कार्यवाही शुरू करने की घोषणा की।


सरकार को नहीं थी जानकारी

धनखड़ के इस फैसले की जानकारी सरकार के फ्लोर लीडर्स को नहीं दी गई थी। जिन सांसदों ने महाभियोग के नोटिस पर हस्ताक्षर किए थे, उनमें से कोई भी सत्ताधारी गठबंधन का सदस्य नहीं था। यह स्थिति भाजपा के लिए असहज और राजनीतिक रूप से नुकसानदेह थी।


सरकार की रणनीति में बदलाव

सरकार की योजना थी कि जस्टिस वर्मा पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते पहले लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव लाया जाए। इस प्रस्ताव पर भाजपा, कांग्रेस और अन्य दलों के 145 सांसदों के हस्ताक्षर थे, जिससे यह संकेत मिल रहा था कि इस मुद्दे पर विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच सहमति बन चुकी है। लेकिन धनखड़ ने राज्यसभा में ही इस प्रस्ताव को आगे बढ़ा दिया।


धनखड़ की सक्रियता से बढ़ी बेचैनी

राज्यसभा के सभापति के रूप में धनखड़ ने इस मामले में विशेष रुचि दिखाई। उन्होंने न केवल प्रस्ताव स्वीकार किया, बल्कि दोनों सदनों की संयुक्त समिति गठित करने का आदेश भी दिया। उनके इस रुख से यह स्पष्ट हो गया कि वे चाहते थे कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ कार्रवाई की शुरुआत राज्यसभा से हो।


विपक्ष का दूसरा मुद्दा

इस बीच, विपक्ष ने राज्यसभा में जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ भी महाभियोग नोटिस पेश किया था। सरकार को डर था कि कहीं यह मुद्दा भी चर्चा में न आ जाए। यही कारण था कि सरकार जस्टिस वर्मा का मुद्दा अपने तरीके से नियंत्रित करना चाहती थी।


भाजपा के हस्ताक्षर पर भ्रम

बताया जा रहा है कि भाजपा के कुछ सांसदों ने एक दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए थे, जो संभवतः जस्टिस वर्मा के खिलाफ था, लेकिन इसे लेकर कुछ भ्रम की स्थिति बनी रही। कयास लगाए जा रहे हैं कि धनखड़ ने इन हस्ताक्षरों को विपक्ष का समर्थन समझ लिया।


इस्तीफे के पीछे का मनोवैज्ञानिक दबाव

धनखड़ स्वतंत्र विचारों और स्पष्ट वक्तव्यों के लिए जाने जाते हैं। जब उन्हें लगा कि उनकी मंशा और सरकार की योजना एक-दूसरे से मेल नहीं खा रही है, तो उन्होंने बिना किसी सार्वजनिक टकराव के पद छोड़ने का रास्ता चुना। शाम होते-होते उन्होंने सरकार को अपने फैसले की जानकारी दे दी और इस्तीफा भेज दिया।


प्रधानमंत्री की शुभकामनाएं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके इस्तीफे के बाद सोशल मीडिया पर पोस्ट कर लिखा, 'मैं जगदीप धनखड़ जी के अच्छे स्वास्थ्य की कामना करता हूं। देश ने उनके योगदान को सराहा है और उनकी सेवा को याद रखा जाएगा।'